"परीक्षाओं को केवल एक महीना ही बाकी है, न जाने सब-कुछ कैसे होगा!! हे भगवान कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूँ....!! न जाने क्या होगा मेरा...!! " नन्हीं पीहू को सुलाकर मन ही मन ईश्वर को गुहार लगाते हुए प्रिया रसोई में गई ।
दाल और चावल का कुकर गैस पर चढ़ाकर फटाफट तड़का डालने के लिए प्याज टमाटर काट कर उसने एक ओर रख दिया। "साढ़े नौ बजे तक रसोई तैयार न हुई तो मेरी तो खैर नहीं...!! चल प्रिया, फटाफट अपने हाथ चला ताकि खाना समय से तैयार हो जाए। नहीं तो आज तेरी शामत ही है.... ।"
प्रिया की थर्ड ईयर ग्रैजुएशन की वार्षिक परीक्षाएँ नजदीक थीं। रोज़मर्रा के कामों को जल्दी - जल्दी निबटा कर वह पढ़ने बैठ जाती थी। पीहू भी अभी बहुत छोटी थी ;मात्र डेढ़ साल की; उसके कारण भी उसकी पढ़ाई में बाधा पड़ती रहती थी।
कामवाली बाई का काम मम्मी जी को पसंद नहीं था इसलिए घर के सारे काम प्रिया के ही जिम्मे थे। पति अनिकेत भी देर से ही घर लौटता। दिनभर दफ्तर के कामों से थका होने के कारण वह भी प्रिया और पीहू को आवश्यक समय नहीं दे पाता था।इस बात का उसे हमेशा मलाल रहता था।
घड़ी में सुई शाम के आठ बजने का इशारा कर रही थी और प्रिया अपनी ही धुनकी में खोए- खोए स्वयं से बतलाती हुई सब्जियाँ काट ही रही थी कि इतने में पीहू के रोने की आवाज़ आने लगी।पीहू जोर - जोर से रोए जा रही थी। पीहू के रोने की आवाज़ जब और तेज़ हो गई तो प्रिया से रहा नहीं गया। वह गैस बंद करके तेज गति से अपने कमरे की ओर भागी। दूध की बोतल मुँह में लगाते ही पीहू तुरंत चुप हो गई। शायद पीहू को तेज़ भूख लगी थी इसलिए वह इतनी ज़ोर- जोर से रोए जा रही थी। प्रिया जब तक पीहू को सुलाती तब तक पौने नौ बज चुके थे। "सब्जी भी अभी तक कटी नहीं है। क्या करूँ....!! ये मम्मी जी की सहेलियाँ भी न जाने क्यों बेवक्त आ जाती हैं।प्रिया तुझे तो आज किसी भी तरह अपना दो पाठ खत्म करना ही होगा.... नहीं तो....!!" इसी उधेड़बुन में हाथ बटाने के उद्देश्य से उसने रसोई से ही अपनी ननद नित्या को आवाज़ लगाई,"नित्याऽऽ.. नित्याऽऽ.. ।"
प्रिया की आवाज़ सुनते ही नित्या उठने को उद्यत हुई कि प्रिया के ससुर जनक नाथ जी ने उसे बैठने का इशारा किया और खुद तेज़ कदमों से क्रोध से भरे हुए रसोई में आ गए और प्रिया पर बरस पड़े....
" तुम्हें समझ नहीं आता कि नित्या पढ़ रही है। उसकी परीक्षा आने वाली है। वह नौकरानी नहीं है तुम्हारी। और हाँ याद रखना आज के बाद से उससे कोई भी काम कहा न..... तो आगे तुम्हारी खैर नहीं।"
कमरे से प्रिया की सास मीनू और और उनकी सहेली मिसेज़ वर्मा भी बाहर आ गईं कि न जाने क्या हुआ।
"मीनू, समझा दो इसे ..कि जरा अपनी हद में रहे वरना ठीक नहीं होगा... हुंहऽऽ.... " क्रोध में धमकाते हुए वे लिविंग रूम में आकर पुनः यथास्थान बैठ गए।
प्रिया सहम गई। वह अपने ससुर के क्रोध से बहुत डरती थी। उसकी आंखों की कोरों से आँसू छलक उठे। परंतु मिसेज वर्मा की ओर नजर पड़ते ही उसने स्वयं को सम्भाल लिया।
मीनू जी भी प्रिया के साथ अपना सास होने का पूरा कर्तव्य निभाती थीं। उन्होंने भी प्रिया को कुछ कड़े शब्दों में समझाया ," प्रिया, केवल तुम्हारी ही नहीं नित्या की भी परीक्षाएँ नजदीक आ रही हैं..... और तुम तो जानती ही हो कि पापाजी कितने गुस्सैल किस्म के हैं, तुम्हें भी सोचना चाहिए था कि इस समय भाई साहब नित्या को पढ़ा रहे हैं... . तो वह कैसे रसोई में आएगी??"
फिर प्लैटफॉर्म का विहंगावलोकन करते हुए उन्होंने कहा, "दाल, चावल तो हो ही गया है। केवल रोटी और सब्जी बनना ही रह गया है न.... कोई बात नहीं.. आज एक- आधा घंटा देरी से खा लेंगे.... अच्छा एक काम और करना... थोड़ा पापड़ वगैरह भी तल लेना... आज भाई साहब और भाभी जी भी रात का भोजन यहीं करेंगे। अब इस समय भाभी जी कहाँऽऽऽ इतनी रात को घर जाकर खाना बनाएँगी।"
" जी.. मम्मी जी.. " प्रिया ने हामी भरते हुए नीचे किए - किए ही अपना सिर हिला दिया।
मीनू जी की बात सुनते ही मिसेज वर्मा की आंखों में चमक आ गई परंतु औपचारिकता निभाने के लिए वे ना - नुकुर करने लगीं। फिर कुछ ही देर में स्वयं ही मान गईं और बोलीं, " अच्छा.. भाभी जी अब आप इतना जोर दे रही हैं तो...."
यहाँ मीनूजी और मिसेज वर्मा दोनों की ही स्वार्थपूर्ति हो रही थी।
प्रिया इस बात से अनजान थी कि लिविंग रूम में वर्मा जी बैठे हैं.. जो प्रतिदिन की तरह आज फिर से आ धमके हैं लेकिन आज वे नित्या को गणित पढ़ा रहे थे। वर्मा जी किसी विद्यालय में गणित के एच. ओ. डी. थे। यूँ तो प्रिया शिक्षकों का बड़ा सम्मान करती थी। लेकिन वर्मा जी उसे फूटी आँख न सुहाते थे। बिना एक दिन नागा किए वे सपत्नीक रोज उसके घर आ धमकते । उनका शाम का चाय, पानी और नाश्ता सब यहीं होता। पर आज तो हद ही हो गई।आज से प्रतिदिन वे नित्या को आकर पढ़ाएँगे।
"इसका मतलब अब हर दिन दो जनों का भोजन मुझे और बनाना पड़ेगा।" - सास ससुर के इस व्यवहार से प्रिया खीझ गई।परंतु कुछ कर भी तो नहीं सकती थी। उसने स्वयं को सम्हाला और पुनः काम में जुट गई।
प्रिया के ससुर जनकनाथ बहुत ही क्रोधी स्वभाव के थे। परंतु वाचाल भी थे उन्हें सबसे बातें करना और मज़ाक करना बहुत अच्छा लगता था। उनके गुस्से से पूरा परिवार खौफ़ खाता था।जब उन्हें गुस्सा आता तो वे य़ह भी नहीं देखते कि आसपास कौन खड़ा है। क्रोध के आवेश में तो बाहर वालों के सामने भी वे सबको डाँट देते थे। छोटी बेटी नित्या उनकी लाडली थी; सो वह उनसे बिलकुल नहीं डरती थी। नित्या कक्षा नौ में पढ़ती थी। लेकिन पढ़ाई में उसका बिलकुल मन नहीं लगता था। घंटों अपनी सखियों से बतियाना, शाम होते ही अपनी बिल्डिंग की सहेलियों के साथ ईवनिंग वॉक के नाम पर एक- एक घंटे घूमना।यह उसकी रोज की दिनचर्या में शामिल था।
उसकी परीक्षा के लिए केवल ढाई महीने ही शेष रह गए थे। सो पूरे घर को अब उसके पास होने की चिंता सताने लगी थी। उन्होंने वर्मा जी से इस विषय में बात की तो उसको गणित पढ़ाने के लिए वे मान गए। हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा होय। अब उनकी पत्नी को रात का भोजन बनाने से छुटकारा मिल जाएगा और कुछ आमदनी भी हो जाएगी। ऊपर से जनक नाथ जी की मेहमान नवाजी अलग से। वर्मा जी की पाँचों उँगलियाँ घी में थीं।
वर्मा जी के दो लड़के थे और दोनों ही विदेश में सेटल थे। घर में मिस्टर और मिसेज वर्मा ही रह गए थे। दो जनों के लिए दो बार भोजन बनाना, दो - दो बार बर्तन जूठे करना, मिसेज वर्मा को बहुत अखरता था इसलिए प्रायः वे दोनों समय का भोजन एक ही बार में बना देती थी।
एक घंटे में भोजन बन जाने के बाद सब एक - एक कर खाने की मेज पर आ चुके थे। तब तक प्रिया का पति अनिकेत भी आ चुका था। सबको खाना परोसकर रोज की तरह प्रिया ने भी रसोई में बैठकर जैसे - तैसे कुछ निवाला अपने गले से नीचे उतारा। एक ओर खाने की मेज पर हँसी मज़ाक का दौर भी चल रहा था तो दूसरी ओर प्रिया के मन में भावनाओं का ज्वर हिलोरे ले रहा था जो अपनी हद तोड़कर बह जाना चाहता था। उसके हृदय में आज बहुत टीस उठ रही थी।
खाते, बतियाते रात के ग्यारह बज गए थे। प्रिया ने भी रसोई की साफ़ सफ़ाई करके बर्तनों को भी करीने से सज़ा दिया।
वर्मा जी और उनकी पत्नी ने भी विदा ली। ज्यों ही अनिकेत अपने कमरे में जाने को उद्यत हुआ जनक नाथ जी ने सख्त लहजे में उसे टोकते हुए कहा, "अनिकेत,रुको, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। "
पिताजी की बात सुन अनिकेत वहीं ठिठक गया और हडबडा़ते हुए बोला , " जी.. जी.. पापा... कहिए!क्या बात है .."
" अनिकेत, तुम्हें पता है न कि मैं प्रिया की पढ़ाई के बिलकुल खिलाफ़ हूँ। उसे कितनी बार समझाया गया.. कि उसे आगे पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। आगे चलकर कौन - सा कलेक्टर बन जाएगी और कौन- सी नौकरी करनी है उसे.. !!! पिछली बार भी मैंने उसे परीक्षा देने से मना किया था। फ़िर भी उसने मेरी बात नहीं मानी.... केवल तुम्हारी ज़िद पर मैंने उसे परीक्षा की इज़ाज़त दी थी । वरना तुम तो जानते ही हो.. कि उसके पापा को भी मैंने उसे विदा करने से मना कर दिया था।"
अनिकेत अपने पिता जनक नाथ जी से बहुत डरता था। लेकिन उससे कहीं ज्यादा वह प्रिया से प्यार करता था इसलिए जब भी प्रिया या उसकी पढ़ाई पर बात आती तो उसमें न जाने कहाँ से साहस आ जाता।
उसने कहा, " हाँ, पापा... याद है मुझे.. अच्छी तरह से याद है.. बेचारे पापाजी... उन्हें कितना दुख पहुँचा था।कितनी मिन्नतें की थीं उन्होंने आपसे। फिर भी आपका दिल नहीं पसीजा । आपने प्रिया को विदा नहीं किया।लेकिन अगले दिन जब मैं प्रिया को लेकर उसके मायके पहुँचा तो उनके चेहरे की खुशी देखने लायक थी पापा... "
बोलते- बोलते वह पिछले साल के घटनाक्रम पर चला गया था। पर सहसा उसकी तन्द्रा टूटी।
" पापा.. वह पढ़ाई में बहुत अच्छी है.. देखा नहीं आपने.. पिछले साल भी वह अपनी कक्षा में अव्वल आई थी। यहाँ तो घर के काम में ही उसका पूरा दिन बीत जाता है। एक यही तो शौक है उसका.. ऐसे में, उसे पढ़ने से रोकना मुझे ठीक नहीं लगता... और वैसे भी इसमें किसी का कोई नुकसान भी नहीं हो रहा है.. " जनक नाथ जी को समझाते हुए अनिकेत ने प्रिया के पक्ष में अपना मत रखा।
मीनू जी ने अनिकेत को बीच में ही टोका,
" नुकसान... नुकसान ही तो हो रहा है। परीक्षाओं के बहाने अब वह कामचोरी करने लगी है... रसोई का कोई काम करना ही नहीं चाहती। हर काम के लिए नित्या को आवाज़ लगाती है। नित्या ये कर दोऽऽ.... नित्या वो कर दोऽऽ.. बीच पढ़ाई में यूँ बार- बार उसे आवाज़ देकर परेशान करना ठीक थोड़े ही लगता है। "
मीनू जी की बात को बीच में ही काटते हुए जनक नाथ जी बोले," बेटा , तुम्हें तो पता ही है .. गणित में कितनी कमजोर है नित्या। उसे पढ़ाने के लिए मैं कितने दिनों से वर्मा जी को मनाने की कोशिश कर रहा था। बहुत कम फीस में वे नित्या को पढ़ाने के लिए राजी हो गए हैं।अब मैं नहीं चाहता कि उसकी पढ़ाई में कोई भी खलल पड़े..अब तुम ही बताओ, क्या तुम चाहते हो कि वह फेल हो जाए?? ", जनक नाथ जी ने अनिकेत की ओर प्रश्नवाचक तीर छोड़ा।
" पापा, ये कैसी बातें कर रहे हैं आप लोग
.. भला मैं क्यों चाहूँगा कि नित्या फ़ेल हो जाए। वो मेरी भी बहन है। उसकी जितनी चिंता आपको है, उतनी ही मुझे भी। लेकिन मैं य़ह भी नहीं चाहता कि प्रिया फेल हो क्योंकि वह मेरी पत्नी है। दुख - सुख में उसका साथ देने का वादा किया है मैंने उससे और मैं उससे उसकी खुशी नहीं छीन सकता । मैं कल ही उसे उसके मायके छोड़कर आऊँगा ताकि वह बिना अवरोध शांति से अपनी परीक्षाएँ दे सके.... " अनिकेत ने अपना फैसला सुनाया।
" ये तू क्या कह रहा है बेटा, बहू इस वक़्त चली जाएगी तो घर के काम कौन करेगा। नित्या की भी परीक्षाएँ नजदीक हैं। अब मैं भी बूढ़ी हो रही हूँ। तुझे तो पता ही है कि आजकल मेरे घुटनों में भी दर्द रहता है। "-मीनू जी ने अपने स्वास्थ्य का हवाला दिया ।
हाँ माँ,सब जानता हूँ... और यह भी जानता हूँ कि प्रिया के आने से पहले भी इस घर के कोई रुके नहीं थे।और अब भी घर के काम यथावत होंगे।
मैं कल ही पड़ोस वाले सक्सेना जी से कहकर फिर से बाई को काम पर लगवा दूँगा।न आपको खाना बनाने की चिंता होगी और न ही घर के बाकी कामों की। फिर तो कोई परेशानी नहीं है न। "
" पर बेटा, जानता है न कि आजकल बाईयां कितना ज्यादा पैसे लेती हैं.. उनके नखरे अलग से सहो .. कई - कई दिन नागा करती हैं.. और पैसे काटो... तो झगड़ा करती हैं.. काम छोड़ने की धमकी भी अलग से देती हैं.. ।" मीनू जी ने अपने बेटे को समझाने का भरसक प्रयास किया
" मैं सब जानता हूँ, माँ। परंतु मेरे लिए प्रिया की खुशी पैसों से कहीं ज्यादा मायने रखती है.. बाई के आ जाने से आप लोगों को भी सहूलियत हो जाएगी और घर की शांति भी भंग नहीं होगी। परीक्षा खत्म होते ही मैं प्रिया को ले आऊँगा। अब तो ठीक है न पापा। "
और हाँ.. माँ.. पापा.. आप लोग कृपया अपनी इस संकीर्ण सोच के दायरे से बाहर आएँ.. भगवान न करे.. कि जैसा व्यवहार आप लोग प्रिया के साथ कर रहे हैं.. कल को वैसा ही व्यवहार कोई नित्या के साथ भी करे।जिस तरह नित्या आपकी लाडली है, प्रिया भी अपने माता - पिता की चहेती है। आप भी इस बात पर विचार करिए पापा। "
अनिकेत की इन दलीलों के आगे जनक नाथ जी के पास कहने को कुछ शेष नहीं रह गया था। - " हाँ.. ठीक है... ,लेकिन याद रखना.. मैं उसे कभी नौकरी करने की इजाज़त नहीं दूँगा। "
" ठीक है.. पापा ।"- अनिकेत ने हामी भरी और अपने कमरे की ओर बढ़ चला।
बातों - बातों में काफी रात बीत चुकी थी।
जनक नाथ जी और मीनू जी ने अनमने होकर अनिकेत के निर्णय को स्वीकार तो कर लिया था परंतु उनका अहं उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था। उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी मानो काटो तो खून नहीं..
" देख रही हो मीनू, ये लड़का जो मुझसे इतना डरता था । आज इतनी बड़ी- बड़ी बातें कर रहा है। मेरी एक नहीं सुनता। "
" अजी धीरे बोलिए, कहीं अनिकेत सुन न ले। जानते हैं न... आजकल के लड़के कैसे होते हैं। अब पड़ोस के श्रीवास्तव जी को ही देख लो.. बस, जरा सी बात पर सास- बहू की थोड़ी - सी नोक-झोंक क्या हुई... उनका इकलौता लड़का अपनी पत्नी को लेकर अलग हो गया।ना जी ना... मैं नहीं चाहती कि हमारा अनिकेत भी...." मीनू जी ने शंका व्यक्त की। जनक नाथ जी ने भी इस बात पर अपनी सहमति की मोहर लगाई और गुस्से में सिर झटकते हुए चुपचाप अपने कमरे में चल दिए।
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अनिकेत ने कमरे में प्रवेश किया।किताबों से भरे बिस्तर पर बैठने के लिए जगह ही नहीं बची थी ।
" तुम अभी तक जग रही हो प्रिया... और कब तक पढ़ोगी??? "
" अरे अनिकेत, तुम आ गए। बड़ी देर कर दी। - कहते कहते प्रिया अपनी किताबें समेटने लगी।
स्नेह भरी नजरों से प्रिया की आँखों में देखते हुए अनिकेत बोला " अच्छी चीजों में देर तो लगती ही है ना..जानेमन ।"
"अच्छी चीजें... मतलब.. "प्रिया की आँखों में अचानक एक रौनक सी आ गई।
"मतलब... तुम्हारे लिए एक ख़ुश खबरी है। बोलो.. सुनना चाहोगी!! "
"ख़ुश खबरी... कैसी ख़ुश खबरी है... अनिकेत बोलो न... अब मेरे धैर्य की और परीक्षा मत लो... एक तो वैसे ही आज मेरा दिन कुछ अच्छा नहीं गया..", प्रिया का चेहरा थोड़ा उदास हो गया...
अनिकेत प्रिया को छेड़ रहा था पर उसका उदास चेहरा देखकर उससे रहा नहीं गया। वह समझ गया था कि आज की घटना को लेकर वह थोड़ी परेशान है।
." जानेमन.. अपना सूटकेस पैक कर लो कल तुम अपने मायके जा रही हो..।"
"क्या ...सचमुच अनिकेत.. मुझे यकीन नहीं हो रहा है..." प्रिया के चेहरे पर एक आश्चर्य मिश्रित मुस्कान उभर आई । "अच्छा अब समझ में आया!! तुम मम्मी और पापाजी से इसी बारे में बात कर रहे थे न! इसलिए तुम्हें इतनी देर ... "
प्रिया अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि अनिकेत ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया। आज प्रिया की मासूमियत पर उसे बहुत प्रेम आ रहा था।