हर स्त्री का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो जहाँ सब खुशी खुशी रहे। उसके घर के इर्दगिर्द ही उस की दुनिया होती है। विवाह के पहले शर्मिष्ठा ने भी ख़्वाब देखे थे कि वह अपने ससुराल में अपने सास - ससुर, पति और बच्चों के साथ खुशी - खुशी रहेगी परंतु उसका यह ख़्वाब जल्द ही चकना चूर हो कर बिखर गया। घर में प्रतिदिन किसी न किसी बात को लेकर क्लेश होता रहता था। ससुराल में उसकी कद्र किसी नौकरानी से ज्यादा न थी।
पानी जब सिर से ऊपर चला गया तो अनूप ने तय किया कि अब वह शर्मिष्ठा को लेकर घर से अलग हो जाएगा। सास ससुर ने भी रोकने की कोशिश नहीं की। उन्हें लगा कि अभी नया - नया जोश है घर से बाहर कुछ दिन रहेंगे तो अकल ठिकाने आ जाएगी। आटे दाल का भाव मालूम पड़ेगा तो लौटकर आ ही जाएँगे। एक ओर अहम की लड़ाई थी तो दूसरी ओर हक की। कोई झुकने को तैयार नहीं था। अनूप भी शर्मिष्ठा को उस घर में नौकरानी की तरह रात दिन खटते हुए नहीं देख सकता था। सो उन्होंने किराए पर रहना ठीक समझा।
अनूप और शर्मिष्ठा के घर जब रोहित पैदा हुआ तो खर्चे भी बढ़ गए। घर के किराए, बिजली, पानी, राशन इन सब में अनूप की पूरी आमदनी खर्च हो जाती और महीने का अंत होते होते ठन - ठन गोपाल। इस बीच ससुराल में देवर और ननद की भी शादियाँ हुईं। परंतु ससुर और सास के रवैये में ज़रा भी अंतर नहीं आया था। देवरानी के साथ भी बुरे व्यवहार के कारण देवर भी अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लग था।
ननद प्रियंका की शादी के बाद उसके पारिवारिक मामलों में भी शर्मिष्ठा के सास ससुर इतनी ज्यादा दखलंदाज़ी किया करते थे कि ननद की भी अपने पति और अपने सास - ससुर से नहीं बनती थी। वे लोग अपनी बेटी प्रियंका को बेहद चाहते थे इसलिए उसकी हर सही - गलत बात में झगड़ने के लिए प्रियंका के घर पहुँच जाते थे। उसके पति निर्मल को बात- बात में डांटते धमकाते थे।
इनकी दखलअंदाज़ीयों के कारण प्रियंका के ससुराल में कलह इतनी बढ़ गई कि ससुर जी ने प्रियंका के नाम से अपने सामने वाली बिल्डिंग में ही एक घर ख़रीद कर उसके नाम कर दिया। और दोनों बेटों को इसकी भनक तक न लगने दी। परंतु यह बात शर्मिष्ठा की देवरानी से ज्यादा दिन तक छिपी न रह सकी । वह पास में ही रहती थी सो उसके पड़ोसियों से उसे यह बात पता चल गई। बातों बातों में उसने शर्मिष्ठा को भी यह बात बता दी। इधर शर्मिष्ठा और अनूप को अपने घर से अलग रहते - रहते तकरीबन बीस साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका था। परंतु लाख कोशिशों के बावजूद वे अपने घर के लिए डाउन पेमेंट भी जमा नहीं कर सके थे। एक दिन शर्मिष्ठा ने हाल - चाल लेने के लिए अपनी सास को फोन किया तो बातों बातों में उन्होंने ताव से कहा, "क्यों नहीं तुम लोग अपना घर ले लेते। कितने दिनों तक किराए के मकान में रहोगे। प्रियंका को देखो, आज इतने बड़े घर की मालकिन है। तुम लोगों से छोटी है। पर अपने दम पर उसने अपना घर भी बना लिया है। " शर्मिष्ठा सारी बातें समझ रही थी पर उसने प्रत्यक्ष होकर नहीं कहा कि प्रियंका ने घर कैसे ख़रीदा है, यह बात वह जानती है।
शर्मिष्ठा बहुत नेक स्त्री थी वह किसी प्रकार की कलह या झगड़ा - झंझट नहीं चाहती थी इसलिए उसने प्रियंका के घर की बात वहीं छोड़ दी और अपना घर न ख़रीद पाने के पीछे की अपनी सारी मजबूरियाँ गिना दी "हाँ मम्मी जी, काश, प्रियंका की तरह मेरा भी अपना घर हो जाता तो कितना अच्छा होता न।मम्मीजी.. आपको तो पता ही है कि घर की डाउन पेमेंट के लिए एक मोटी रकम चाहिए। बस उसका ही इंतज़ाम नहीं हो पा रहा है। हम इतने सालों से प्रयास कर रहे हैं। और मम्मी जी.. गहने वगैरह भी तो... इतने नहीं हैं कि उसको बेच कर उतनी रकम जमा हो जाए।"
शर्मिष्ठा ने सोचा इन्होंने प्रियंका को एक घर ख़रीद कर दे दिया तो हमें तो डाउन पेमेंट की रकम तो दे ही सकते हैं।
" मम्मीजी बस वहीं... डाउन पेमेंट पर बात अटक रही है। बाकी किश्त तो हम भर ही लेंगे। हर महीने इतना किराया भर - भर कर हमारी तो कमर ही टूट गई है। किश्त भरने में हमें कोई दिक्कत नहीं होगी। जैसे किराया भरते हैं वैसे किश्त भी भर देंगे। "
"शर्मिष्ठा, पापा जी आ गए हैं। खाना माँग रहे हैं। चलो रखती हूँ बाद में बात करेंगे और सब ठीक है न। "
"हाँ मम्मी जी, सब ठीक है। अच्छा नमस्ते मम्मीजी अपना ख्याल रखियेगा।" बात पूरी भी नहीं हो पायी थी कि फोन कट गया।
शर्मिष्ठा ने निराश होकर फोन बगल में रख दिया। आज फिर वही हुआ था जो इससे पहले भी कई बार हो चुका था। घर की बात हर बार निकाल कर मम्मीजी यही जताने की कोशिश करती कि हमसे दूर रहकर भी तुमने क्या कर लिया। मानो चिढ़ा रही हों।
अनूप अपने माता - पिता को भली भांति जानता था इसलिए वह बामुश्किल ही कभी उनसे बात करता था।
शर्मिष्ठा जब भी डाउन पेमेंट की बात करती तो पापाजी खाना माँगने लगते। आज फिर एक बार शर्मिष्ठा अपने घर का सपना चूर - चूर होते देख रही थी ।
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