गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

सास धर्म... लघुकथा

सास धर्म 


एक वर्ष के दुधमुंहे बालक की नजर एकाएक जब अपनी दादी की छाती पर पड़ी तो दूध पीने चाहत में व‍ह उनकी छाती को बार - बार स्पर्श करने लगा। यह देख दादी ने  कहा, "एनकर चाचा - बाप त ऐसन नाय रहेन,लागत आ ननिअउरे
पड़ि गएन. "( इसके चाचा और पिता ऐसे नहीं थे, लगता है ननिहाल में किसी को पड़ गया है।)
पालने में ही अपने साल भर के नन्हें- मुन्हें पोते के चरित्र का विश्लेषण करते-करते अधरों पर कुटिल मुस्कान लिए सास ने एक बार फिर से बहू को सताने का अपना सास धर्म निभा दिया था । आँखों में अश्रु लिए अपने साड़ी के कोरों को मसलती हुई असहाय बहू मन मसोस कर पति और ससुर से शिकायत के डर से चुप चाप रसोई में चल दी.

6 टिप्‍पणियां:

  1. पति की माँ यदि बहू की भी माँ बन जाए तो ससुराल
    से संबंधित आधी समस्याएं खत्म हो जाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रतिक्रिया के लिए आभार मैम आपने बिलकुल सही कहा।

      दिल से अच्छी इंसान ही अच्छी माँ भी बन सकती है और अच्छी सास भी। वरना अच्छी माँ तो हर स्त्री होती है।कुछ अपवादों को छोड़कर।

      हटाएं
  2. सुगढ़ संदेशपरक लघुकथा जिसमें संवाद की कमी खटक रही है जबकि यह लघुकथा अपना प्रभाव पाठक के ज़ेहन-ओ-दिल पर बख़ूबी छोड़ती है.
    लिखते रहिए.
    बधाई एवं शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं

पाठक की टिप्पणियाँ लेखकों का मनोबल बढ़ाती हैं। कृपया अपनी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं से वंचित न रखें। कैसा लगा अवश्य सूचित करें👇☝️ धन्यवाद।।

वह पीला बैग

"भाभी यह बैग कितना अच्छा है!! कितने में मिला?" नित्या की कामवाली मंगलाबाई ने सोफे पर पड़े हुए बैग की तरफ लालचाई नजरों से इशार...