शनिवार, 21 दिसंबर 2019

ये कैसा मापदंड



ये कैसा मापदंड.....
ये कैसा मापदंड...



ये कैसा मापदंड..

नये साल की शुभकामनाएँ देने के लिए ऊर्जा ने जब अपनी सास को फोन किया तो बातों- बातों में उसने महसूस किया कि उनका मूड कुछ उखड़ा उखड़ा - सा है।
मिसाल तो वे अपनी बेटी प्रतिमा की दे रही थी पर उनका इशारा ऊर्जा की तरफ ही था। उलाहना भरे स्वर में वे प्रतिमा की शिकायत करने लगी।
कहने लगी - "प्रतिमा ने भी अभी तीन बजे दोपहर को फोन करके मुझे नए साल की बधाई दी।अपनी बातों पर थोड़ा अधिक जोर देते हुए वे कहने लगी- "मैंने कहा कि नए साल की बधाई देने के लिए, तुम्हारी बुआ का फोन सुबह छह बजे ही आ गया, जबकि वो ननद है मेरी, और तुम, बेटी होकर भी मुझे इतनी देर से फोन कर रही हो। "
तो प्रतिमा कहने लगी - " नहीं... मम्मी , ऐसी कोई बात नहीं है। सुबह से काम में इतनी व्यस्त थी कि समय ही नहीं निकाल पाई। अब जाकर काम से फुर्सत पाई हूँ तो सबसे पहले आप को ही फ़ोन लगाया है। " बेचारी प्रतिमा, उसकी विवशता मैं समझ सकती हूँ - बेटी का पक्ष लेते हुए उन्होंने ऊर्जा की गलती की तरफ इशारा कर दिया. बेचारी ऊर्जा कुछ बोल न सकी और चुपचाप अपनी सास की उलाहना सुनती रही.
फोन रखने के पश्चात ऊर्जा सोचने लगी कि सासू माँ को तीज- त्योहार, होली- दिवाली आदि मौकों पर कोई फोन न करे तो उन्हें बहुत बुरा लगता है। मैं भी तो उनकी तरह ही घर की बड़ी बहू हूँ। उन्होंने कहाँ अपनी बेटी को सिखा दिया कि वह भी बड़े भाई - भाभी को तीज - त्योहार, मौके - धौके पर फोन कर लिया करे। वह तो कभी नहीं करती। हर बार मुझे ही करना ही पड़ता है और किसी मौके पर यदि बुआ फोन न करे तो उन्हें बुरा लग जाता है।
वाह रे! कैसे अजीब मापदंड है ये!!! अपने लिए अलग और दूसरों के लिए अलग!!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर रचना।आदर्श आचार का पालन बहुत कष्टकारी है। व्यक्ति जीवन में अधिकतम सुविधाएं भोगना चाहता है।

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