अधिकार
" ये रोमा को न जाने क्या हुआ है आज .. सुबह से देख रही हूँ हर क्लास में उठकर बाथरूम जा रही है... पूछने पर बता भी नहीं रही है कि आखिर बात क्या है ... " मन ही मन यह सोचते हुए अदिति ने चलती कक्षा में अपने हाथ उठाकर शिक्षक से बाथरूम जाने की आज्ञा माँगी और तीव्र गति से बाथरूम की ओर चल दी। जाते वक़्त भी वह रोमा के बारे में ही सोच रही थी।
रोमा बी. ए. सेकेंड ईयर की छात्रा थी। अपने मायके में रहकर वह अपनी पढ़ाई पूरी कर रही थी इसलिए छुट्टियों में ही वह अपने ससुराल जा पाती थी ।
अदिति जब बाथरूम के भीतर पहुँची तो उसने पाया कि रोमा रुई के एक गोलाकार टुकड़े को निचोड़ रही थी। रूई से गिरते सफ़ेद रंग के द्रव्य को देखकर वह अचरज में पड़ गई।
"रोमा य़ह क्या है??? तुम यह, इस रूई से क्या निचोड़ रही हो??" - अदिति ने आश्चर्य से पूछा।
नहीं.. कुछ नहीं.. बस वो.. ऐसे ही.. कुछ भी तो नहीं... तुम भी क्या परेशान हो रही हो... चलो.. कक्षा चल रही है... देर से जाएंगे तो डाँट पड़ेगी...जानती हो न प्रोफेसर पाटिल को.. ", रोमा ने बहाना बनाते हुए अदिति को टालने की कोशिश की।
" हाँ जानती हूँ प्रोफेसर पाटिल को .. और तुझे भी बचपन से जानती हूँ... तू मुझसे कुछ छुपा रही है न .. बता क्या छुपा रही है.. " अदिति ने जोर देते हुए रोमा से दोबारा पूछा।
" अरे.. अदिति भला मैं तुझसे क्या छिपाउँगी.. तू ही बता... हां।"-रोमा ने अदिति को टोका।
" वो सब मैं नहीं जानती रोमा!! ... पर इतना जरूर जानती हूँ कि कोई बात तो जरूर है.. जिसे तू मुझसे छिपा रही है… तेरी उदासी तेरे चेहरे पर साफ़ साफ़ झलक रही है बहन.. कुछ तो हुआ है … बता ना.. आखिर क्या हुआ है.. "
अदिति पूछ ही रही थी कि रोमा को अपने बैग से छिपाकर रूई निकालते हुए अदिती ने पकड़ लिया था। उसका हाथ पकड़ कर वह बोली, "और ये क्या.. तेरे हाथ में ये रूई का गोला कैसा... इसका क्या करेगी...?? - रोमा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया.
"अरेऽऽ.. कुछ नहीं बस ऐसे ही..."
"देख रोमाऽऽ, सच - सच बोल, जब तक तू बोलेगी नहीं, तब तक मैं तुझे बाथरूम में नहीं जाने दूँगी..." कहते- कहते रोमा का रास्ता रोककर अदिति बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी हो गई।
"अब जाने भी दे अदिति, एक तो मैं पहले से ही परेशान हूँ... ऊपर से तू भी मुझे परेशान कर रही है... क्या जानना चाहती है बोल...." रोमा फफक पड़ी। जिन आंसुओं को वह कबसे दबाए हुए थी वो बाहर आ गए।
" वो कल मेरे बच्चे को ले गए…. मेरी छाती से बार - बार दूध गिर रहा है अदिति..क्या करूँ मैं.. " रोमा निढाल होकर रोते हुए वहीं फर्श पर बैठ गई।
"बच्चे को ले गए?? कौन ले गया???" - अदिति को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
" पापाजी!!! "
"पापाजी… तो क्या कल तेरे ससुर जी आए थे... पर.. तेरा बेटा तो अभी बहुत छोटा है न... अभी तो वह छः महीने का भी नहीं हुआ... ऐसा कैसे हो सकता है!!! . रोमा,.. क्या हुआ पूरी बात बता ??- अदिति ने रोमा को झकझोरते हुए पूछा।
कल नहीं, परसों शनिवार को… जब वो जाने लगे तो बोले, "वंश की दादी उसे बड़ा याद करती है इसलिए मैं इसे ले जा रहा हूँ…।" रोमा ने रोते -! रोते कहा।
"तो क्या आंटी जी ने उन्हें रोका नहीं… और अंकल जी???"
" पापा तो दफ्तर से लौटे ही नहीं थे। मम्मी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की.. कि वंश अभी बहुत छोटा है.. माँ का दूध पीता है.. वो कैसे रह पाएगा अपनी माँ के बगैर… पर वो जिद पर अड़े रहे .. बोले उसके लिए मैं दूध की नई बोतल ले आया हूँ… आप चिंता न करें.. "
" पर तूने वंश को कैसे ले जाने दिया रोमा …?? "
मैं कुछ नहीं कर सकती थी अदिति.. उस वक़्त घर में मेरे और मम्मी के अलावा और कोई भी नहीं था.. मैं ने बहुत बार उन्हें रोका। हाथ जोड़कर उनके सामने गिड़गिड़ाई। रोते हुए उनके पीछे - पीछे रिक्शे तक भागी… पर उनका दिल नहीं पसीजा… मेरा वंश रो रहा था अदिति … फिर भी उन्होंने मेरे वंश को मुझे नहीं दिया।उन्हें.. न मुझपर दया आई न वंश पर . मुझे झिड़ककर रिक्शे में बैठकर चल दिए।
" और अजय… तूने अपनी पति अजय से बात की इस बारे में..वो क्या बोल रहा था। "
"नहीं, अजय से बात नहीं हो पाई… वो कहीं बाहर गए हुए हैं… कई बार फ़ोन करने की कोशिश की पर फोन नहीं लगा…"
ओह!! … कैसा निष्ठुर है तेरा ससुर रोमा… उन्हें शर्म नहीं आई एक छोटे से बच्चे को उसकी माँ से अलग करते हुए… छीः आखिर क्या सोच कर उन्होंने ऐसा घृणित कार्य किया… "
" वो.. वो कहते हैं वंश उनका पोता है… इसलिए वे पूरे हक से उसे ले जा सकते हैं.."
" कुछ भी… ऐसा कहीं होता है… दुनिया का कोई कानून किसी भी बच्चे को उसकी माँ से दूर करने का अधिकार नहीं देता। पोता है तो इसका क्या मतलब… वो कुछ भी कर सकते हैं.. तेरी जगह यदि मैं होती.. तो उन्हें ऐसा सबक सिखाती कि वे जिन्दगी भर याद रखते…"
" फिर घर लौटने के बाद अंकल ने तेरे ससुर से बात की या नहीं.." रोमा ने आवेश में पूछा।
" बात की पापा ने … वे बोले एक दो दिन में उसे वापस ले आएँगे। पापा को बहुत गुस्सा आ रहा था पर मेरा घर बिगड़ने के डर से वो भी ज्यादा कुछ बोल नहीं पाए। उन्होंने सोचा शायद उनको अपनी गलती का एहसास हो जाएगा। " रोमा द्रवित हृदय से बोले जा रही थी।
" पर गलती का एहसास हुआ… नहीं न… और आज तीसरा दिन है…. तू, अभी मेरे साथ चल रोमा… ऐसे आदमियों को सही रास्ते पर लाना जरूरी है… तू सीधी है न इसलिए उन्होंने ऐसी हिमाकत की… "
" पर कहाँ ले जा रही है मुझे अदिति… "-रोमा ने पूछा।
"रोमा, तुझे मेरे लखनऊ वाले मामा के बारे में पता है न… वो हाई कोर्ट में वकील हैं… तू तो उनसे एक बार मिली भी है!! चल, उनसे एक बार बात करते हैं.. वो जरूर कोई न कोई रास्ता निकलेंगे…, "अदिति ने अपनी राय रखी।
" लेकिन अदिति मैं.. इस तरह से प्रत्यक्ष होकर मम्मी, पापा और अजय की मर्जी के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकती…" रोमा ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए कहा।
ट्ट्रिंग.. ट्रिंग…. ट्ट्रिंग.. ट्रिंग… तभी रोमा के फोन की घंटी बजती है।
सामने से आवाज़ आती है, "हैलो रोमा, कहाँ हो तुम… मैं तुम्हारे कालेज के गेट के बाहर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ.. जल्दी से आ जाओ… "
" अदिति पूछती रह गई कि किसका फोन था । पर रोमा की खुशी का कोई ठिकाना न था।वह कुछ बोलना नहीं बल्कि कुछ देखना चाहती थी। अदिति को अपने साथ खींचते हुए वह तेज गति से कॉलेज गेट की ओर भागी। गेट पर अजय अपने बेटे वंश को गोद में लिए खड़ा था।
रोमा ने वंश को अजय के हाथों से लेकर अपनी छाती में सिमटा लिया। रोमा की खुशी देखकर अपने पिता द्वारा की गई गलती की ग्लानि से अजय की आँखें भी नम हो गईं।
अदिति दूर ही ठिठक गई..खुशी के मारे उसकी आंखों से भी आँसू बह निकले।
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