शुक्रवार, 15 मई 2020

#ब्रह्म हत्या


 ब्रह्म-हत्या

 "अरे ...आज इ गइया एतना काहे बोलत ब  ।" मध्यरात्रि में ज़ोर - ज़ोर से गाय के रंभाने की आवाज़ सुनकर गोरकी की नींद उचट गई।

गाय की आवाज़ में एक अलग ही छटपटाहट थी ।इसलिए
आँखे मलते हुए दरवाजे की सांकल खोलकर गोरकी घर से बाहर की ओर भागी ।उसे लगा गाय को प्रसव पीड़ा हो रही है।शायद इसीलिए वह इतना रंभा  रही है ।परंतु गोरकी जैसे ही बाहर पहुँची, सामने का नज़ारा देखकर वहीं ठिठक गई। 
 गाय के गोठे से आग की बड़ी- बड़ी लपटें उठ रही थी। आग इतनी ज़्यादा तेज़ थी कि गोरकी गोठे के भीतर जाकर खूँटे से बंधी हुई गाय को छुड़ाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। घबराहट के मारे वह कुछ भी समझ पाने में असमर्थ थी इसलिए मुँह पर हाथ धरकर कुछ पल तक विस्फारित नज़रों से वह उन आग की ऊँची- ऊँची लपटों को देखती रही । चाँद अपनी पूरी रोशनी के साथ आसमान में अपनी छटा बिखरा रहा था।परंतु धीरे धीरे धुएँ के गुबार ने काले बादलों की तरह पूरे आसमान को आच्छादित कर लिया ।
अपनी जान की फिक्र किसे नहीं होती। गोरकी की गाय पूरी तरह से अग्नि की लपटों में घिर चुकी थी। अपनी जान बचाने के लिए वह छटपटा रही थी। खूंटे से बँधी लोहे की सांकल से छूटने  की जद्दोजहद में वह लगातार अपनी सींगों से खूँटे पर प्रहार कर रही थी।

"अरे रमेशवा के बाबू, रमेशवा के बाबू उठा हो  ….गइया के छोड़ावा…..देखा ... गोठवा जरत बा हो…. अब का होइ हो ….अरे माई ...अब का होइ…. हमार गइया मरि जाइ हो…."रोते -रोते गोरकी बेतहाशा अपने पति बसेसर को जगाने के लिए घर के भीतर भागी।

गोरकी का क्रंदन सुनते ही धीरे -धीरे पूरा गाँव बसेसर के  फूंस के बने जलते हुए गोठे के पास इकट्ठा हो गया था।बालटी लोटा ,मटका जो कुछ जिसके हाथ लगा उस में  पास के कुएँ से जल भर -भर कर सब आग बुझाने में जुट गए । किसी तरह आग पर काबू तो पा लिया गया परंतु तब तक बसेसर औऱ गोरकी का सब कुछ लुट चुका था।बसेसर की गाय इसी माह में ब्याने वाली थी। मगर अब कोई उम्मीद नहीं थी। आग में पूरी तरह से झुलस कर गाय धड़ाम से ज़मीन पर गिरी और कुछ ही क्षणों में वह जिंदगी की बाज़ी हार गई। 
"फट….."-  मरते वक्त उसका पेट फटने की बड़ी तेज़ आवाज़ आई।अपने पूरे जीवन काल में ग्रामवासियों ने अपनी आँखों से ऐसा दृश्य नहीं देखा था जो आज देख लिया।
उस आवाज़ ने एक पल के लिए सबकी  साँसे रोक दी थीं।
पेट फूटते ही एक बछिया अपनी माँ के पेट से बाहर ज़मीन पर गिरी । बछिया की सांसें चल रही थी। सबके आश्चर्य का ठिकाना न था।सबने दाँतों तले अपनी उँगली दबा ली। कुदरत का एक नया करिश्मा देखा था सबने।
"बसेसर अऊर ओकर मेहरारू जरूर कउनो अच्छा काम किहे होइहैं ...अरे बहिनी...तबे त बछियवा जीयत बा न।नाही त का ईहो अपने माइ के संघे न मरि ग होत… "रामराज की पतोहू ने आँचल को मुँह में दबाए दबाए आंखों को मटकाते हुए लछमिनिया के सामने बसेसर और गोरकी का पाप पुण्य तौल दिया।
"हाँ बहिन… सही कहू… लेकिन ई जवन कुल जरि ग.. ओकर का…." लछमिनिया ने भी रामराज की पतोहू के सामने अपना पक्ष रख दिया।
पूरे गाँव में तरह- तरह की बात होने लगी।कोई बसेसर और गोरकी को सांत्वना देता तो कोई उनके पाप -पुण्य का फल बताता।

ज्येष्ठ मास की वह भोर बसेसर औऱ गोरकी के लिए सुख का सवेरा नहीं बल्कि दुःख और दर्द का अंधेरा ले कर आई थी। गर्मी के कारण पारा बहुत ऊपर पहुँच चुका था।इसलिए गोठे में रखे पुआल ने आग पकड़ लिया था।गोठे से लगे कच्चे घर में भी आग ने खूब तांडव मचाया था ।पुआल और भूंसे के कारण उसके नीचे दबा कर सुरक्षित रखा गया अनाज भी जल कर ख़ाक हो चुका था।आखिर ग़रीब किसान के पास उसकी पूँजी के नाम पर  होता ही क्या है…. उसके फांके के दिन आ चुके थे।और दस वर्षीय रमेशवा पर जो ब्रह्म हत्या का पाप लगा था उसका भी निवारण करना था। बीती रात गाय को उसने ही तो खूँटे से बाँधा था।
पंडित जी आकर धार्मिक रीति रिवाज़ों के अनुसार अंत्येष्टि संस्कारों की सारी यथोचित विधि ,खर्च आदि सब बता गए। 

"रमेशवा के माइ का करी ..जाइ के साव से करजा लेइ आई   नाही त ...कइसे चली। "बसेसर ने गोरकी से कहा।

" रमेश के बाबू कउनो अउर तरीका ना हौ का…. उ सहुकरवा त   ढेर के सूद लेइ….कइसे चुकी कर्जवा...एक ठे बछियवौ अब मुड़े पे बा ...अब वोहु के चारा- पानी ...हे  भगवान!! ई कौने पाप के सज़ा मिलत हौ…. रमेशवा बेचारा कइसे एतना दिन सम्हारी… उ त अबहीं खुदै नान्ह के  लड़िका हौ। ओकरे बेचारे पे ब्रह्म हत्या लगि ग भगवान ... ई कौने जनम के सज़ा दिहू भगौती माई…." गोरकी माथे पर हाथ धरकर भगवान को दुहाई देने लगी।

गोरकी  की बात सुनकर बसेसर भी सोच में पड़ गया । सूद और कर्ज न चुका सकने का डर उसके मन को भयभीत कर गया।  निढाल होकर वह वहीं खाट पर बैठ गया। 
पर उसके बेटे के सिर पर लगे ब्रह्म हत्या के पाप  का पश्चाताप करने के लिए रीति रिवाज़ों का पालन भी तो करना पड़ेगा। एक ओर कुआँ तो दूसरी ओर खाई। कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है यही विचार कर बसेसर उठा और क़र्ज़ माँगने के लिए साव से मिलने उसके घर की ओर चल दिया।







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