"अरे क्या बात है ,भाई ..आज सम्राट घर नहीं गया। अभी तक यहीं है! " .. सम्राट की ओर मुस्कराहट फेंकते हुए चरण बोला
इसके पहले की सम्राट कुछ बोलता केवल बोल उठा, "भाई, अपना सम्राट अब सचमुच का सम्राट हो गया है। तुझे पता है... छः दिन हो गए,अब रात को भाभी का फोन नहीं आता. "
चरण चौंका, "अरे भाई, ये तो कमाल हो गया, क्यों सम्राट.... ये कमाल कैसे हो गया... आखिर तुमने ऐसा क्या कर दिया ?
" अरे कुछ नहीं यार... बस वेलेंटाइन के दिन जब मैं घर पहुँचा तो चिक चिक करने लगी," ये कोई टाइम है घर आने का... रात के एक बज रहे हैं.... आधी दुनिया सो चुकी है और तुम नशे में धुत होकर अभी आ रहे हो.. बस शुरू हो गई सा@@# (गाली देते हुए)बस फिर क्या था मुझे भी गुस्सा आया और मैंने भी घर का दो चार सामान पटक कर तोड़ दिया.... दुबक गई वो एक कोने में जाकर सा@#... अब हिम्मत नहीं होती कि मुझसे कोई सवाल करे!- आवाज़ में पुरुष होने का अहंकार झलक रहा था।
"तंग आ गया हूँ इस सबसे... कभी कहती है नया साल घर पर मनाओ... वेलेंटाइन घर पर मनाओ..... हमें कहीं घुमाने लेकर चलो..."
"अरे.. मेरी कोई सोशल लाइफ है कि नहीं.... मैं क्यों उसकी बात मानूँ! कोई उसका गुलाम थोड़ी हूँ... कमाती है तो क्या हुआ!!! मुझे खरीद लिया है क्या... ""
"सही कह रहे हो भाई... औरतें जो होती है न सा#& (गाली )पैरों की जूती होती हैं.. उन्हें उनकी औकात समय- समय पर दिखाती रहनी चाहिए..." बीच में टोकते हुए केवल बोल उठा।
सम्राट ने अपनी बात पूरी की - "अरे यार तो क्या हुआ जो मैं कमाता नहीं, मेरी भी जिन्दगी है.... न बाबा न... मैंने भी सोच लिया अब उसकी एक न सुनूँगा.
चरण - "सही कहा भाई.. चल यार... मेरे लिए भी एक पेग बना... वेटर... वेटर... "
वेटर हाथ बांधे उपस्थित हुआ - "सर बार बंद होने का टाइम हो गया है अब और नहीं मिलेगा। "
सम्राट -"ओफ.. ओ.. चल केवल तेरे ऑफिस में चलते हैं वहाँ कौन रोकने वाला है हमें! "- और बार जोरदार ठहाके से बार गूंज उठा .
तीनों दोस्त शराब की एक नई बोतल मंगाकर गलबहियाँ डाले झूमते हुए बार से निकल गए...
सुधा सिंह 'व्याघ्र'