शनिवार, 23 दिसंबर 2023

भेदभाव


"अरे चंदा ,यह क्या कर रही हो? ये दाल मुनिया को क्यों पिला रही हो?" 


"क्या हुआ जीजी?आपका मतलब नहीं समझी मैं।आखिर इस दाल में हुआ क्या है?"


"कैसी बातें कर रही हो चंदा ,मैंने अपनी आँखों से देखा कि गोलू ने कटोरी में ही दाल पीकर उगल दिया । वही दाल तुम मुनिया को पिला रही हो ?"


 "तो क्या हुआ जीजी... मुनिया गोलू  की बहन है, आखिर भाई बहन में जूठ- काठ क्या , हम भी तो अपने भाई का जूठा खाते हैं। क्या आपने कभी नहीं खाया अपने भाई बहनों का जूठा?"


खाया है चंदा।लेकिन  ... यहाँ बात जूठे की नहीं है। गोलू ने  दाल में थूक दिया और वही दाल तुमने मुनिया को पिला दी। कायदे से तुम्हें वह दाल फेंक देनी चाहिए थी।"-जानकी चंदा को समझाने का प्रयास कर रही थी।

 

"जीजी आपको पता है न कि दाल कितनी महँगी है। मैं ऐसे कैसे खाना बर्बाद कर दूँ।"-जानकी की टोका- टाकी चंदा  को अच्छी नहीं लगी इसलिए वह जानकी से खीझ गई।


"बात खाना बर्बाद करने की नहीं है चंदा,बात भेदभाव करने की है ।मैंने कई बार यह महसूस किया है कि तुम भी लड़का औऱ लड़की में फ़र्क करती हो । जब से गोलू  हुआ है तब से अपनी तीनों लड़कियों के प्रति तुम्हारा व्यवहार एकदम बदल- सा गया है।"


चंदा ने डेढ़ वर्षीय गोलू को गोद में उठा लिया और उसे चूमते -दुलराते हुए बोली,"तो क्या हुआ जीजी ।आखिर ये तीनों एक न एक दिन हमें कंगाल करके अपने- अपने ससुराल चली जाएँगी । मेरे साथ तो मेरा गोलू ही रहेगा न । औऱ वैसे भी जीजी  मुझे लगता है कि आप मेरे गोलू से चिढ़ती हैं । चार- चार लड़कियों के बाद भी आपको कोई लड़का नहीं हुआ न इसलिए मेरे गोलू को देख- देखकर मन ही मन जलती हैं आप।क्या मैं नहीं समझती आपकी चाल!!)"


सहसा चंदा के पति मनोहर की क्रोध भरी आवाज़ आँगन में गूँजी,"चंदा,ये मैं क्या सुन रहा हूँ; तुमने मुनिया को मुँह से उगली हुई दाल पिला दी।कान खोल कर सुन लो चंदा,मेरे लिए मेरे चारों बच्चे एक समान हैं और भाभी ने  ऐसा क्या कह दिया कि तुम उनको इतनी खरी -खोटी सुना रही हो।वो सही तो बोल रही हैं ।मैंने तो ऐसा कभी नहीं सोचा ।पर तुम्हारे मन में ये भेदभाव क्यों। अपनी लड़कियों के दहेज का इंतजाम तो मुझे करना है न। मैं करूँगा ...।पर दोबारा ऐसा भेदभाव नहीं सहूँगा। जितना प्यारा मुझे गोलू है ...उतनी ही प्यारी हैं मेरी तीनों बेटियाँ। बड़ी भाभी से अभी माफ़ी माँगो।"-  मनोहर की फटकार सुन चंदा की नजरें शर्म से ज़मीन में गड़ गईं। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था।

मनोहर अपनी तीन साल की मासूम मुनिया को गोद में लेकर उसे प्यार करने लगा।









बधाई हो!!

  बधाई हो!! 


"मम्मी, मम्मी मैं पास हो गया। बहुत- बहुत बधाइयाँ आपको! "सुनते ही माँ का चेहरा खिल गया।

" तुम्हें भी बहुत- बहुत बधाई बेटा। " 

परंतु एकाएक माँ के चेहरे की मुस्कान  उदासी में बदल गई । 

" बिना परीक्षा दिए ही न! "

'क्या माँ या तो तारीफ ही कर लो या बेइज्जती ही । अब लॉक डाउन है तो उसमें मेरी क्या गलती है? "

 माँ भी भी बेटे की हाँ में हाँ मिला कर हौले से मुस्कुरा दी । 

वह पीला बैग

"भाभी यह बैग कितना अच्छा है!! कितने में मिला?" नित्या की कामवाली मंगलाबाई ने सोफे पर पड़े हुए बैग की तरफ लालचाई नजरों से इशार...