बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

मुझसे दोस्ती करोगी ???

 "सर आपने मुझे बुलाया?" अजुनी ने अपने बॉस मिस्टर चड्ढा के कैबिन में प्रवेश करते हुए उनसे पूछा।

"अ.. हाँ.. आओ... और बताओ कैसा लग रहा है तुम्हें इस दफ़्तर में, आज पूरे डेढ़ महीने हो गए! मैंने अक्सर तुम्हें चुप- चुप ही देखा है... तुम्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं है न यहाँ ..." बॉस ने अजुनी को कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए कहा ।


"जी सर, अच्छा लग रहा है.. और परेशानी कैसी सर... कोई परेशानी नहीं... सब ठीक है.." अजुनी ने हामी भरते हुए उत्तर दिया।


" बढ़िया.... अच्छा ये बताओऽऽऽ.... क्या तुमऽऽऽ... क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?" कहते हुए मिस्टर चड्ढा अपनी कुर्सी से उठकर अजुनी के बेहद करीब आ गए।


"जी... ये आप क्या कह रहे हैं सर.. दोस्त!!!! ... मैं आपका मतलब नहीं समझी सर ।" अजुनी ने सकपकाते हुए पूछा । अजुनी ने उनके इरादे को भाँप लिया । उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी दादाजी की उम्र का व्यक्ति और ऐसी हरकत!!


व‍ह झटके से अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हुई, " सर, क्या व‍ह भी आपकी दोस्त है?" न जाने क्या सोचते हुए उसने कैबिन के बाहर अपने कार्य में व्यस्त अपनी सहकर्मी दिव्या की ओर इशारा करते हुए मिस्टर चड्ढा से पूछा।


मिस्टर चड्ढा ने सिर घुमाकर दिव्या की ओर देखा और मुस्कराते हुए हाँ में सिर हिला दिया। अजुनी अब अपने बॉस के चरित्र को भली- भाँति समझ चुकी थी। इतने बड़े दफ्तर में दिव्या और अजुनी के इतर कोई और महिला कर्मचारी नहीं थी इसलिए बात को और आगे बढ़ाना उसे ठीक न लगा। 


 उसने कहा ,"सर आप तो जानते ही हैं कि 

मैं ज्यादा बातें नहीं करती.. तो क्या मैं आपको लिखित में अपना जवाब दे सकती हूँ? "


मिस्टर चड्ढा को अपनी दाल गलती नजर आई... उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि अजुनी इतनी आसानी से मान जाएगी। उस समय उनकी आँखों में हवस की भूख साफ़- साफ़ दिखाई दे रही थी।


" लिखित में... ठीक है.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी... मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूँ..." कहते हुए मिस्टर चड्ढा मगन होकर कुछ गुनगुनाने लगे। 


" जी सर.. मैं बस अभी आती हूँ। " - यह कह कर तेज़ कदमों से व‍ह कैबिन से बाहर निकल गई।


वह समझ नहीं पा रही थी कि मिस्टर चड्ढा दिव्या को अपनी दोस्त बता रहे थे तो व‍ह उससे इस विषय में बात करें या न करें... ख़ैर उसने दिव्या से बात करने का विचार त्याग दिया। 


कुछ देर बाद हाथ में एक पत्र लिए हुए ठंडे दिमाग से व‍ह कैबिन में घुसी, "सर... यह रहा मेरा उत्तर...मेरा त्यागपत्र... मुझे आप जैसे किसी दोस्त की जरूरत नहीं है...आप जैसे पुरुषों की वजह से स्त्रियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं ...क्या आप अपनी बेटी याऽऽ.. या अपनी पोती से भी ऐसी ही बातें करते हैं... अरे और कुछ नहीं तो कम से कम अपनी उम्र का ख्याल तो करना चाहिए था...." बोलते- बोलते अजुनी की आवाज़ तेज हो गई थी ... दफ्तर के सभी कर्मचारी धीरे - धीरे अब कैबिन के भीतर प्रवेश कर चुके थे। 


" यह सब गलत है... तुम मुझपर झूठा आरोप मढ़ रही हो अजुनी... तुम मुझे बदनाम करना चाहती हो.. " सबको यूँ कैबिन के भीतर देखकर चड्ढा ने अपनी सफ़ाई देनी चाही परंतु उसकी झुकी आँखें सत्य की गवाही दे रही थीं। इसके आगे व‍ह कुछ और बोल न सका। 


" शुक्र कीजिए सर... आपकी उम्र का लिहाज़ करते हुए पुलिस में आपकी शिकायत दर्ज़ नहीं कर रही हूँ...और हाँ... यह रहा मेरे आधे महीने का वेतन... अब मैं जा रही हूँ यहाँ से । " अजुनी ने चड्ढा की मेज़ की दराज़ से कुछ रुपए निकाले और दरवाज़े की ओर बढ़ गई। 

सब मौन थे किंतु पूरा दफ़्तर तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था। 












वह पीला बैग

"भाभी यह बैग कितना अच्छा है!! कितने में मिला?" नित्या की कामवाली मंगलाबाई ने सोफे पर पड़े हुए बैग की तरफ लालचाई नजरों से इशार...