शनिवार, 23 मई 2020

अभागिन


जेष्ठ मास की झुलसाने वाली इस कड़ी धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग पर जहाँ एक परिंदा भी नजर न आता था, छब्बीस वर्षीय मुनिया उसके एक किनारे पर अपने नवजात बच्ची को अपने सीने पर औंधे मुंह लिटाकर निढाल हो कराह रही थी। उसकी बच्ची भी लगातार रोये जा रही थी।

तभी इस चिलचिलाती धूप में भूखे प्यासे पैदल ही अपने गंतव्य की ओर धीरे धीरे अग्रसर हो रहे कुछ मजदूरों को किसी नन्हें बालक की रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी। आवाज सड़क की बाई ओर से आ रही थी।

"अरे  देखो तो लगता है अब ही इसने बच्चे को जन्म दिया है .. इसकी तो नार भी नहीं कटी है... ए सोनू पानी दे रे जल्दी.. देख तो एकर मुँह झुरा (सूखा) गया है.. हे भगवान ..."
राज देव ने अपने साथी सोनू से पानी माँगकर मुनिया को पिलाया ।
"बहिन अब ठीक हो। आपका बच्चा होने वाला था तो आप बाहर क्यों निकली.... क्या आपके साथ कोई है.??"

मुनिया बोलने की हालत में नहीं थी।
राज देव ने यहाँ -वहाँ नजर दौड़ाई परंतु उसे आसपास कोई  नजर नहीं आया।

 "बहन जी, इस बच्ची के पापा कहाँ हैं?आप अकेली कहाँ जा रही हैं???",

 राजदेव ने एक नुकीला पत्थर उठाकर 
दो तीन प्रहार करके बच्चे की लटक रही नार को काट दिया।
कुछ देर बाद जब उसे थोड़ी चेतना आई तो उसकी आँखों का समंदर बह निकला,

"बड़ी अभागिन है ई  बिटिया हमार... एक हफ्ता पहिले जब उ(पति) दम तोड़ दिए तो ओनकर लाश पुलिस वाले उठा ले गए । कारखाना बंद होए से रुपिया पैसा तो कब के खतम हुई गवा..अरे.. इही अभागिन खातिर हमें खिला देते थे केहू तरह... लेकिन खुद पानी पीकर रही जाते थे। एकर पापा भूख बर्दाश् नहीं कर पाए भइया..उ..हमें अकेला छोड़ के चल दिये। अठवाँ महीना चलत रहा ..केकरे भरोसे जिनगी बीतत बाबू ...." अपनी आपबीती बताते -बताते मुनिया फूट -फूटकर रोयी।

फिर खून से सनी अपनी नवजात बच्ची को अपनी मैली कुचैली पैबंद लगी साड़ी में लपेटकर मुनिया अकेली अपने गंतव्य के लिए निकल पड़ी।
और पीछे छोड़ गई रक्त सना इतिहास जिसका जिक्र कालांतर में शायद किसी पन्ने पर न होगा।

सुधा सिंह 'व्याघ्र

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही दर्द भरी दास्तां।🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. हृदय को झकझोर देने वाला मार्मिक प्रसंग.... I

    ये नहीं अभागिन भारत की नारी,
    हौसलों में वीर योद्धाओं पर भारी,
    इतिहास की नहीं मोहताज,
    बिखेरती स्वयं अपना प्रकाश I

    वीर जननी को नमन!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रतिक्रिया के लिए अनेकानेक धन्यवाद मैम

      हटाएं

पाठक की टिप्पणियाँ लेखकों का मनोबल बढ़ाती हैं। कृपया अपनी स्नेहिल प्रतिक्रियाओं से वंचित न रखें। कैसा लगा अवश्य सूचित करें👇☝️ धन्यवाद।।

वह पीला बैग

"भाभी यह बैग कितना अच्छा है!! कितने में मिला?" नित्या की कामवाली मंगलाबाई ने सोफे पर पड़े हुए बैग की तरफ लालचाई नजरों से इशार...