कल कल बहती नदिया के तट पर एक बड़े से खुले सभागार में बड़े पैमाने पर वार्षिक समारोह का आयोजन किया गया था।उस कार्यक्रम में गरिमा भी आज अपना कथक नृत्य पेश कर रही थी। सूर्य अस्ताचल पर था। नीचे नदिया का नयनाभिराम सुंदर किनारा औऱ ऊपर अथाह विस्तृत नीला वितान । सबकुछ कितना मनमोहक था।तभी अचानक से चिड़ियों का झुंड कलरव करते एक -एक करके उनके ऊपर से गुजरने लगा। चिड़ियों की चहचहाहट और बजता संगीत वातावरण को और खुशनुमा बना रहा था । परंतु चिड़ियों का मधुर स्वर ज्यों ही गरिमा के कानों में पड़ा उसका मन व्याकुल हो उठा। बेचैनी व व्यग्रता के भावातिरेक में वह खूब जम कर नाची। उसने बहुत अच्छा नृत्य पेश किया और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा वातावरण गूँज उठा।जैसे ही नृत्य समाप्त हुआ वह तेजी से मंच के पीछे भागी और अपना मास्क निकाल कर फूट -फूटकर रोने लगी।
रागिनी ने दूर से ही जब उसे रोते देखा तो वह भी घबराकर दौड़ी- दौड़ी उसके पास आई ," गरिमा, क्या हुआ...तुम इतना रो क्यों रही हो ...आखिर क्या हो गया... अभी तक तो सबकुछ ठीकठाक था.. तुम इतना अच्छा नाची... फिर क्या हो गया... कहीं चोट -ओट तो नहीं आई...दिखाओ मुझे कहाँ लगी है...", रागिनी ने अपने मुँह से मास्क उतारते ही आशंकाओं की झड़ी लगा दी।
"कुछ नहीं रागिनी, बस ऐसे ही।", गरिमा ने आँसू पोंछते हुए अपनी भर्राई हुई आवाज में कहा।
"कुछ नहीं पर कोई इतना रोता है क्या... नहीं ..कुछ तो बात है.... लाओ देखूँ तो कहाँ लगी है......",अपने हाथों को सैनिटाइजर लगाकर गरिमा के पैरों का मुआयना करने के लिए रागिनी ने अपना हाथ बढ़ाया तो गरिमा उससे छिटककर दूर खड़ी हो गई।
" रागिनी, तूने आसमान में चिड़ियों की आवाज सुनी न ...तुझे पता है मुझे वह आवाज अच्छी नहीं लग रही थी... मुझे क्रोध आ रहा था... खुद पर... तुझ पर..इस पर... उस पर... सब पर.... पूरे समाज पर....",रोते- रोते वह एक -एक करके आसपास खड़े लोगों की ओर इशारा करते हुए बोलती जा रही थी।
"अरे.. आज हम हवा में खुलकर साँस नहीं ले सकते... किसी से मिल नहीं सकते... ये मास्क , ये सैनिटाइजर , ये सोशल डिस्टैन्सिंग,....हंह. हम दोनों गले मिलकर अपनी इस जीत की खुशी भी नहीं मना सकते रागिनी.....दर्शकों के चेहरे पर मास्क.. हमारे चेहरे पर मास्क... क्या वे मेरा.. तेरा... या.. हममें से किसी भी एक का, चेहरा देख पाए..क्या वे हम में से किसी एक को भी पहचान सकते हैं...नहीं न... तू ही बता.. क्या तू खुश है इस जिंदगी से...",गरिमा ने रोते- रोते पूछा।
"नहीं रागिनी... मैं तो क्या...यहाँ कोई भी खुश नहीं है..पर एक उम्मीद है सबकुछ ठीक होने की..सबकुछ पहले जैसे होने की... रागिनी...अच्छे दिन नहीं रहे मेरी दोस्त ..तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे...तुम देखना एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा... फिर हमें यूँ चेहरे पर मास्क नहीं लगाना पड़ेगा...यूँ समझ लो कोरोना के रूप में ईश्वर परीक्षा ले रहे हैं... और मुझे यकीन है , इस परीक्षा में हम अच्छे अंकों से पास होंगे... बस हमें सब्र रखना होगा...रखोगी न सब्र....."रागिनी की आँखों में आशा की एक चमक नज़र आ रही थी । वह गरिमा को समझा ही रही थी कि तभी इनाम देने के लिए इनके ग्रुप के नाम की घोषणा हुई।
"सुना गरिमा आज की परीक्षा तो हमने जीत ली... तो क्या अगली परीक्षा नहीं जीतेंगे..." रागिनी की बातों ने अब गरिमा के हृदय में भी एक नई उम्मीद का बीजारोपण कर दिया था। जिसका असर उसकी आँखों में साफ नजर आ रहा था।जीत की ट्रॉफी लेने के लिए अब वह दुगुनी गति से मंच की ओर भागी।
लेखनी को प्रणाम!प्रेरणादायक रचना l
जवाब देंहटाएंअभी तो प्रकृति ने सिर्फ करवट ही ली है,
अभी तो अट्टहास बाकी है,
सीखो पतंगे से, प्रलय के कगार तक,
उम्मीद की लौ, सुलगती रहनी चाहिए II
गरिमा. अपनी गरिमा जीवित रखेगी.....
शुभकामनाओं सहित
हर कोई पिसता है उसमें ,जब चलती उसकी चाकी है।
जवाब देंहटाएंये कोरोना काल मात्र, ईश्वर के दंड की झाँकी है।।
फल है ये मनुज की करनी का ।
सच है कि प्रकृति का अट्टहास अब भी बाकी है..।।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 मई 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह!सुंदर ,प्रेरणादायक सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शुभा जी🙏🙏🙏🙏
हटाएंबहुत अच्छे .....हमारे वर्तमान स्थिति को दर्शाता हुआ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कंचन
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