रविवार, 1 मार्च 2020

मन का बोझ....




" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।

जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"

" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।
💕

 "बस यही कि उन अपनों को कैसे अपना बनाया जाए जो मुझे अपना कहते तो हैं पर अपना समझते नहीं... " जानकी ने लंबी साँस भरी और चश्मा ऊपर बालों में टिकाते हुए संदली की आँखों में आँखें डालकर अपनत्व भरे लहजे से कहा।

जानकी की बात सुन कर संदली की नजरें भी जानकी के चेहरे पर गड़ गईं।भावुक नजरों से व‍ह उनकी तरफ देखने लगी... जैसे व‍ह कुछ समझने की भरपूर कोशिश कर रही हो।

उसका गला भर आया। कुछ हिचकिचाते हुए रुंधे स्वर में वह बोली, "नहीं आंटी जी, जैसा आप समझ रही हैं ऐसी कोई बात नहीं है। बस..बस मैं अपना दुख बताकर किसी और को दुखी नहीं करना चाहती।"

"बेटा, क्या मैं समझती नहीं हूँ... पति के निधन के बाद यूँ अकेले जिंदगी काटना आसान नहीं होता।जब तुम्हारे पति के रोड एक्सीडेंट की ख़बर सुनी;मन दहल गया था। दो दिन तक गले के नीचे एक कौर तक न उतरा था मेरे... और विक्रम ने तो अपने आपको कमरे में ही बंद कर लिया था। बड़ी मुश्किल से उसने स्वयं को सम्भाला है।"

संदली अचंभित होकर बस जानकी की बातें सुन रही थी । उसके मन में उथल-पुथल मची हुई थी।

"यह क्या कह रही हैं आंटी जी? ऐसा क्यों??? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा.. विक्रम का यूँ.. कमरे के अंदर खुद को बंद कर लेना.... आंटी जी... आंटी जी प्लीज खुलकर बताइए.. आखिर आप कहना क्या चाहती हैं?"-उन्हें बीच में टोकते हुए विस्फारित नजरों से संदली ने पूछा।

"बेटी, लखनऊ से ट्रांसफ़र लेकर जब हम दोबारा इस शहर में आए तो तुम्हारे बारे में हमें सब पता चला। जब तुम्हारे घर गई तो पता चला, तुम यहाँ हो। इसलिए तुमसे मिलने यहीं चली आई।" - जानकी ने हौले से संदली का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोलना जारी रखा।

 "बेटी.. विक्रम तुम्हें बहुत चाहता है। उसने कई बार तुमसे अपने दिल की बात बतानी चाही। पर.. तुम तो जानती ही हो कि वह कितना शर्मिला है। कभी किसी लड़की से बात नहीं करता। तुम जब भी कभी विम्मी के साथ घर आती थी, वह किचन में मेरी मदद करने के लिए दौड़ा आता था। और तुम्हें देखने के बहाने मेज़ पर नाश्ता भी खुद ही लगाता था। व‍ह मन ही मन तुम्हें चाहने लगा था बेटी । तुम्हारा नाम सुनते ही उसका चेहरा टमाटर की तरह लाल सुर्ख हो जाया करता। मैंने उसके मन को भाँप लिया था। इसलिए जब उससे तुम्हारे बारे में बात की तो उसने मुझसे अपने दिल की बात कह दी।
बेटा... किसी अच्छे मौके पर तुमसे इस विषय पर बात करके हम तुम्हारे मम्मी पापा से मिलने की सोच रहे थे। लेकिन शायद ईश्वर की कुछ और ही इच्छा थी। तुम्हारी शादी तय हो गई। "

एक ओर जानकी बोले जा रही थीं। दूसरी ओर संदली की आँखों से भर- भर आँसू बह रहे थे। व‍ह न जाने क्या सोच रही थी

 "उसकी खुशी में ही मेरी खुशी है बेटी। उसकी पसंद तुम हो। कहो, क्या तुम मेरे बेटे से शादी करोगी??? बोलो बेटा.. क्या मेरे विक्रम से शादी करोगी??? "

 संदली का गला रुद्ध था। अश्रु पलकों का दायरा तोड़ चुके थे।
 "आंटी जी.... जिस .... जिस दिन उसका एक्सीडेंट हुआ, मेरा और उसका बहुत बड़ा झगड़ा हुआ था। व‍ह बहुत गुस्से में घर से निकला था... उसका एक्सीडेंट...उसका एक्सीडेंट मेरी ही वजह से....."
   संदली के मन पर एक भार- सा था। व‍ह अपने पति के एक्सीडेंट का जिम्मेदार खुद को मान रही थी।

 "नहीं, नहीं बेटी.. तुम य़ह क्या कह रही हो... उसकी मौत की जिम्मेदारी तुम नहीं हो... अपने मन से य़ह बोझ उतार दो.. संदली, बेटा.., जीवन और मृत्यु उस ऊपर वाले के हाथ में है। व‍ह सबको गिनकर साँसे देता है। और साँसे पूरी हो जाने के बाद, व‍ह उन्हें अपनी शरण में ले लेता है.... इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं। य़ह सब किस्मत का खेल है बेटा।"

संदली व‍हीं बैठ गई और काफ़ी देर तक जमीन में अपना सिर गड़ाए रोती रही...

 जानकी चाहती थी कि संदली आज जी भर कर रो ले ताकि उसका दर्द पिघल कर पूरी तरह से बह जाए इसलिए उसने भी उसे रोने से नहीं रोका।

 "रो ले बेटा,आज जी भर कर रो ले.. क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मेरी होनेवाली बहू की आँखें दोबारा कभी नम हो। "

" माँ...." सिसकते हुए संदली जानकी से लिपट गई। शायद संदली के मन का बोझ अब उतर चुका था।












गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

सोशल लाइफ.... लघुकथा



दो मित्र एक बार में बैठकर शराब का सेवन कर रहे थे। तभी चरण भी आ पहुँचा।

"अरे क्या बात है ,भाई ..आज सम्राट घर नहीं गया। अभी तक यहीं है! " .. सम्राट की ओर मुस्कराहट फेंकते हुए चरण बोला

इसके पहले की सम्राट कुछ बोलता केवल बोल उठा, "भाई, अपना सम्राट अब सचमुच का सम्राट हो गया है। तुझे पता है... छः दिन हो गए,अब रात को भाभी का फोन नहीं आता. "

चरण चौंका, "अरे भाई, ये तो कमाल हो गया, क्यों सम्राट.... ये कमाल कैसे हो गया... आखिर तुमने ऐसा क्या कर दिया ?

" अरे कुछ नहीं यार... बस वेलेंटाइन के दिन जब मैं घर पहुँचा तो चिक चिक करने लगी," ये कोई टाइम है घर आने का... रात के एक बज रहे हैं.... आधी दुनिया सो चुकी है और तुम नशे में धुत होकर अभी आ रहे हो.. बस शुरू हो गई सा@@# (गाली देते हुए)बस फिर क्या था मुझे भी गुस्सा आया और मैंने भी घर का दो चार सामान पटक कर तोड़ दिया.... दुबक गई वो एक कोने में जाकर सा@#... अब हिम्मत नहीं होती कि मुझसे कोई सवाल करे!- आवाज़ में पुरुष होने का अहंकार झलक रहा था।

 "तंग आ गया हूँ इस सबसे... कभी कहती है नया साल घर पर मनाओ... वेलेंटाइन घर पर मनाओ..... हमें कहीं घुमाने लेकर चलो..."

"अरे.. मेरी कोई सोशल लाइफ है कि नहीं.... मैं क्यों उसकी बात मानूँ! कोई उसका गुलाम थोड़ी हूँ... कमाती है तो क्या हुआ!!! मुझे खरीद लिया है क्या... ""

"सही कह रहे हो भाई... औरतें जो होती है न सा#& (गाली )पैरों की जूती होती हैं.. उन्हें उनकी औकात समय- समय पर दिखाती रहनी चाहिए..." बीच में टोकते हुए केवल बोल उठा।

सम्राट ने अपनी बात पूरी की - "अरे यार तो क्या हुआ जो मैं कमाता नहीं, मेरी भी जिन्दगी है.... न बाबा न... मैंने भी सोच लिया अब उसकी एक न सुनूँगा.

चरण - "सही कहा भाई.. चल यार... मेरे लिए भी एक पेग बना... वेटर... वेटर... "

वेटर हाथ बांधे उपस्थित हुआ - "सर बार बंद होने का टाइम हो गया है अब और नहीं मिलेगा। "

सम्राट -"ओफ.. ओ.. चल केवल तेरे ऑफिस में चलते हैं वहाँ कौन रोकने वाला है हमें! "- और बार जोरदार ठहाके से बार गूंज उठा .

तीनों दोस्त शराब की एक नई बोतल मंगाकर गलबहियाँ डाले झूमते हुए बार से निकल गए...

सुधा सिंह 'व्याघ्र'

गुरुवार, 26 दिसंबर 2019

सास धर्म... लघुकथा

सास धर्म 


एक वर्ष के दुधमुंहे बालक की नजर एकाएक जब अपनी दादी की छाती पर पड़ी तो दूध पीने चाहत में व‍ह उनकी छाती को बार - बार स्पर्श करने लगा। यह देख दादी ने  कहा, "एनकर चाचा - बाप त ऐसन नाय रहेन,लागत आ ननिअउरे
पड़ि गएन. "( इसके चाचा और पिता ऐसे नहीं थे, लगता है ननिहाल में किसी को पड़ गया है।)
पालने में ही अपने साल भर के नन्हें- मुन्हें पोते के चरित्र का विश्लेषण करते-करते अधरों पर कुटिल मुस्कान लिए सास ने एक बार फिर से बहू को सताने का अपना सास धर्म निभा दिया था । आँखों में अश्रु लिए अपने साड़ी के कोरों को मसलती हुई असहाय बहू मन मसोस कर पति और ससुर से शिकायत के डर से चुप चाप रसोई में चल दी.

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

ये कैसा मापदंड



ये कैसा मापदंड.....
ये कैसा मापदंड...



ये कैसा मापदंड..

नये साल की शुभकामनाएँ देने के लिए ऊर्जा ने जब अपनी सास को फोन किया तो बातों- बातों में उसने महसूस किया कि उनका मूड कुछ उखड़ा उखड़ा - सा है।
मिसाल तो वे अपनी बेटी प्रतिमा की दे रही थी पर उनका इशारा ऊर्जा की तरफ ही था। उलाहना भरे स्वर में वे प्रतिमा की शिकायत करने लगी।
कहने लगी - "प्रतिमा ने भी अभी तीन बजे दोपहर को फोन करके मुझे नए साल की बधाई दी।अपनी बातों पर थोड़ा अधिक जोर देते हुए वे कहने लगी- "मैंने कहा कि नए साल की बधाई देने के लिए, तुम्हारी बुआ का फोन सुबह छह बजे ही आ गया, जबकि वो ननद है मेरी, और तुम, बेटी होकर भी मुझे इतनी देर से फोन कर रही हो। "
तो प्रतिमा कहने लगी - " नहीं... मम्मी , ऐसी कोई बात नहीं है। सुबह से काम में इतनी व्यस्त थी कि समय ही नहीं निकाल पाई। अब जाकर काम से फुर्सत पाई हूँ तो सबसे पहले आप को ही फ़ोन लगाया है। " बेचारी प्रतिमा, उसकी विवशता मैं समझ सकती हूँ - बेटी का पक्ष लेते हुए उन्होंने ऊर्जा की गलती की तरफ इशारा कर दिया. बेचारी ऊर्जा कुछ बोल न सकी और चुपचाप अपनी सास की उलाहना सुनती रही.
फोन रखने के पश्चात ऊर्जा सोचने लगी कि सासू माँ को तीज- त्योहार, होली- दिवाली आदि मौकों पर कोई फोन न करे तो उन्हें बहुत बुरा लगता है। मैं भी तो उनकी तरह ही घर की बड़ी बहू हूँ। उन्होंने कहाँ अपनी बेटी को सिखा दिया कि वह भी बड़े भाई - भाभी को तीज - त्योहार, मौके - धौके पर फोन कर लिया करे। वह तो कभी नहीं करती। हर बार मुझे ही करना ही पड़ता है और किसी मौके पर यदि बुआ फोन न करे तो उन्हें बुरा लग जाता है।
वाह रे! कैसे अजीब मापदंड है ये!!! अपने लिए अलग और दूसरों के लिए अलग!!!

रविवार, 15 दिसंबर 2019

रिश्तों का मोल



 एक ओर सर्दी और ज़ुकाम ;ऊपर से शरीर का तेज ताप । लगातार दो दिनों से रीमा का बुखार चढ़ - उतर रहा था।इसलिए उसने सोचा कि वह अपनी छोटी बहन डॉक्टर अभिधा से दवा ले लेगी और इसी बहाने उससे मुलाकात भी हो जाएगी ।साथ ही साथ व‍ह अपनी छोटी बहन के साथ कुछ अच्छे सुखद क्षणों को साझा भी कर लेगी। एक पंथ दो काज हो जाएंगे। वैसे भी अभिधा की व्यस्तता के कारण रीमा को उससे मिले तकरीबन पांच छः महीनों से ऊपर हो गया था। उसका क्लिनिक रीमा के घर से कुछ तीन चार किलोमीटर की दूरी पर ही था। इसलिए रीमा अकेली ही ऑटोरिक्शा लेकर उसके क्लिनिक पहुँच गई ।

जब व‍ह उसके क्लिनिक पहुँची तो कम्पाउन्डर ने उसे बताया कि डॉक्टर के कैबिन में पहले से ही एक स्किन पेशेंट मौजूद है । इसलिए व‍ह नहीं जा सकती। रीमा ने सोचा कि थोड़ी देर में शायद उस स्किन पेशेंट से फुर्सत पाकर व‍ह उसे स्वयं अपनी कैबिन में बुला लेगी या खुद ही उससे मिलने कैबिन से बाहर चली आएगी। परंतु जैसा व‍ह सोच रही थी वैसा कुछ नहीं हुआ।
 रीमा का बदन बुखार से खूब तप रहा था। इसी कारण उसे बहुत कमज़ोरी भी महसूस हो रही थी। उससे ठीक से बैठा नहीं जा रहा था। फिर भी वह न जाने क्या सोच कर काफी देर तक बैठी रही । उसने सिर उठाकर दीवार की ओर देखा ।घड़ी की सुई नौ बजा रही थी । एक घंटे से ऊपर हो गए थे। रीमा से अब और बैठा नहीं जा रहा था।इसलिए उसने कम्पाउन्डर से कहलवा भेजा कि जाओ कह दो दीदी को तेज बुखार है सर्दी खांसी भी है तो उसकी दवा दे दे। उसने सोचा शायद यह सुनकर ही वह बाहर आ जाए कि दीदी की तबीयत खराब है।
 थोड़ी देर में कम्पाउन्डर भीतर से दवा लेकर लौटी और खुराक समझाते हुए रीमा के हाथ में दवा की पुड़िया थमा दी। रीमा को य़ह बात भीतर तक झकझोर गई कि जिस बहन को वह हमेशा अपने सीने से लगाए रहती थी। आज उसका व्यवहार कितना बदल गया है। तीन चार महीनों से न कोई बात ,न कोई फोन। यही सोचते - सोचते दुखी मन से व‍ह घर लौट आई। उसके मन में तसल्ली थी कि फोन करके अभिधा उसका कुशलक्षेम जरूर पूछेगी। आखिर वह एक डॉक्टर है और ऊपर से उसकी बहन।
 कुछ दिनों में दवाइयों की खुराक से रीमा की तबीयत तो ठीक हो गई परंतु न अभिधा का फोन आया और न अभिधा ही आई । रीमा के हृदय को गहरी चोट पहुँची। यह बात उसने पहले भी कई बार महसूस की थी कि कई दिनों से अभिधा उससे दूरी बना रही थी ।जब- जब रीमा ने उसे फ़ोन कर उससे बात करने की कोशिश की ,तब -तब उसके कंपाउंडर ने ही फोन उठाया और व्यस्तता का बहाना बनाकर फ़ोन काट दिया। उसके मन के किसी कोने में यह बात घर कर गई कि गरीबी सबसे बड़ी बीमारी है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं।जब तक य़ह बीमारी साथ रहती है तब तक अपने भी अपनों को नहीं पहचानते।
 औऱ अभिधा क़े इस व्यवहार ने भी अब इस बात की पुष्टि कर दी थी कि पैसों के आगे रिश्ते का कोई मोल नहीं होता।  

वह पीला बैग

"भाभी यह बैग कितना अच्छा है!! कितने में मिला?" नित्या की कामवाली मंगलाबाई ने सोफे पर पड़े हुए बैग की तरफ लालचाई नजरों से इशार...