रविवार, 24 मई 2020

आँखों का तारा

   
पच्चीस वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर अनमोल खुशी से उछलता हुआ जैसे ही घर के भीतर दाखिल हुआ, माँ... माँ.. कहते हुए अपनी बूढ़ी माँ के गले से लिपट गया।

   आज उसकी प्रसन्नता सातवें आसमान पर थी । उसकी यूँ चहकती हुई आवाज सुनकर वृध्द माता - पिता के चेहरे पर भी खुशियांँ छा गईं। बहुत दिनों बाद आज उसे इतना खुश देखा था।

"अन्नू आज तू बहुत खुश नजर आ रहा है बेटा.... बता न क्या हुआ??"  बेटे की खुशी देख माँ फूले नहीं समा रही थी।

"अरे मांँ.. मैं आपसे बता नहीं सकता कि आज मैं कितना खुश हूँ। " 

" वह तो दिख ही रहा है अन्नू, हमें भी तो बताओ, आखिर बात क्या है, हम भी तो जाने। " अनमोल के  बूढ़े पिता जो अब लाठी के सहारे के बिना एक कदम भी चल नहीं पाते थे, उन्होंने भी उसकी इस बेइन्तेहाँ खुशी का कारण जानने की कोशिश की।

प्रसन्नता से गदगद अनमोल तेज कदमों से पिताजी के पास जाकर सोफ़े पर बैठ गया और कहने लगा," मुझे आशीर्वाद दीजिए पिताजी, मुझे नौकरी मिल गई है। "

"अरे वाह, भगवान, तेरा लाख लाख शुक्र है। " खुशी से नम हुई 
आँखों को अपनी कॉटन की साड़ी के कोरों से माँ ने  पोंछा।

"मैं अभी जाकर मंदिर में दिया जलाती हूँ।" माँ ने आंखे बंद करके ईश्वर को धन्‍यवाद दिया और पूजा घर  में चली  गई। पिताजी की बूढ़ी आँखे में भी खुशी की चमक साफ़- साफ़ दिखाई दे रही थी।

" लेकिन पिताजी.." 
क्यों... क्या हुआ बेटा?

पिताजी, मेरी नौकरी यहाँ नहीं, विदेश में लगी है और एक महीने के भीतर ही मुझे जॉइन करना है ... "

तो इसमें क्या समस्या है अन्नू ? ये तो बहुत बड़ी खुश ख़बरी है, आज तुमने गर्व से हमारा सीना चौड़ा कर दिया है।"

अनमोल के चेहरे पर अब खुशियों की जगह चिंता की लकीरें थीं।

"ओहह.. अब समझ में आया... तुम्हें हम दो बूढ़ा - बूढ़ी की चिंता सता रही है न... कि तुम्हारे बिना हम दोनों कैसे रहेंगे..... नहीं.. नहीं... अन्नू, हमारी फिक्र बिलकुल भी मत करो... तुम्हारी खुशी में ही हमारी ख़ुशी है." पिताजी की यह बात सुनकर अनमोल असमंजस में पड़ गया कि क्या कहे और कैसे कहे कि बात ये नहीं, बात तो कुछ और है।

दोनों की बातें चल ही रही थी कि माँ ने भी खुशी- खुशी कमरे में प्रवेश किया।

" हाँ अन्नू... तुम हमारी तरफ से बिलकुल निश्चिंत रहो। हम सब संभाल लेंगे बेटा। "

"तुम खुशी खुशी विदेश जाने की तैयारी करो । और फ़िर आकांक्षा भी तो है वह भी आती - जाती रहती है।" माँ ने भी अपनी बात कहते हुए अनमोल को निश्चिंत रहने की सलाह दी।

"पर माँ बात वह नहीं है जो आप समझ रहे हैं"... अनमोल के चेहरे की रौनक गायब हो गई थी। चिंता की लकीरों ने उसे कस कर जकड़ रखा था। उसके मन में उठते झंझावातों ने उसे विकल 
कर दिया था. किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा अनमोल समझ नहीं पा रहा था कि अब वह क्या करे. 
"फिर क्या बात है बेटा... एक बार कहो तो.. जब तक तुम कहोगे नहीं.. तब तक समस्या का समाधान नहीं निकलेगा...."

बहुत कुछ सोच समझकर अनमोल ने अपने मन के पापों की किताब खोल दी.

"माँ.. दरअसल .. विदेश जाने के लिए मुझे दस से बारह लाख रुपयों की जरूरत है. उसका इंतजाम कहाँ से होगा.."

अनमोल की बात सुनते ही बूढ़े माता पिता के चेहरे की हंसी भी गायब हो गई।

" माँ.. पिताजी... अगर आप लोगों को बुरा न लगे तो मेरे पास एक युक्ति है... "

" बुरा क्यों लगेगा बेटा.. तुम कहो तो...अन्नू तुम हमारे इकलौते लाडले बेटे हो.. तुम्हारे लिए तो हम कुछ भी करेंगे।" - पिताजी ने युक्ति जाननी चाही।

"पिताजी हमें यह घर बेचना पड़ेगा.. इससे मेरे विदेश जाने का इंतजाम भी हो जाएगा और आपने बैंक से मेरी पढ़ाई के लिए जो शैक्षणिक कर्ज़ लिया था वह भी चुकता हो जाएगा। "

अनमोल की बात सुनते ही माता - पिता के पैरों तले से मानो जमीन खिसक गई. उनके चेहरे की चिंता की लकीरें और गहरा गईं..

घर बेचने की बात पिताजी को अच्छी नहीं लगी -" लेकिन अन्नू , ले दे कर सम्पति के नाम पर हमारे पास एक यह घर ही तो बचा है... अगर इसे भी बेच देंगे तो इस बुढ़ापे में कहाँ जाएंगे.इस उम्र में क्या हम दर - दर की ठोकरें खाएँगे? नहीं, नहीं बेटा... कुछ और  सोचो... कोई और उपाय जरूर होगा.... मैं यह घर किसी कीमत पर बेचने नहीं दूँगा. " कहते- कहते पिताजी लाठी टेकते हुए अपने कमरे की ओर चल दिए। 
मन ही मन बुदबुदाने लगे," ह्हंहहह... ये आजकल के बच्चे भी न... इन्हें अपने स्वार्थ के आगे तो कुछ दिखता ही नहीं. अब इस उम्र में घर बेच दूँगा तो जाऊँगा कहाँ......... "
पिताजी की बुदबुदाहट सुनकर अनमोल और परेशान हो गया.

"माँ... तुम ही समझाओ न पिताजी को.... मैंने बहुत सोचा माँ .. पर हमारे पास इसके अलावा दूसरा और कोई चारा नहीं है। अब इतने जल्दी कहीं से लोन भी तो नहीं मिलेगा। माँ क्या तुम नहीं चाहती कि मेरा भविष्य उज्ज्वल हो।"

अनमोल की बात सुनकर माँ अनमोल के सुनहरे भविष्य के सपने सजाने लगी। घर में नीरवता छाई थी। माँ को कुछ समझ नहीं आ रहा था। अनमोल भी माँ के बोलने का इंतजार कर रहा था।

कुछ मिनटों के बाद माँ का मौन टूटा। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए अपनी बात रखी- "लेकिन अन्नू इतनी जल्दी घर के लिए खरीददार भी तो नहीं मिलेगा। "

"खरीदार!!" अनमोल की स्मित रेखा दुगनी हो गई. "
" तुम उसकी फिक्र मत करो माँ.. मैंने सब बंदोबस्त कर लिया है. हमारे मकान को खरीदार मिल गया है. दलाल और खरीदार दोनों बस आते ही होंगे... और वैसे भी, माँ आप ही तो कहती हो न... कि आप लोगों के बाद यह घर मेरा ही है.. तो देखो, अब यह मेरे ही काम आ रहा है...है न... "

अनमोल बोलता ही जा रहा था, तत्क्षण दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी ...
उन्हें देखते ही अनमोल के चेहरे पर फिर से मुस्कान पसर गई - "लो माँ.. वे लोग आ भी गए। "

अनमोल ने उनसे कुछ बातें की और पेपर कलम लाकर माँ को थमाते हुए कहा...." माँ... मेरी अच्छी माँ.. इसपर दस्तखत कर दो न...."

माँ ने एक नज़र अनमोल के चेहरे की ओर देखा. अनमोल इतना खुश था मानो  दुनिया का सबसे बड़ा ख़ज़ाना उसके हाथ लग गया हो. 
बूढी माँ ऐसी परिस्थिति में करती भी क्या वह तो बस अपने बेटे के सुनहरे भविष्य के सपने देख रही थी. 
उन्होंने उदास हो कर न जाने क्या सोचते हुए उन कागजों पर दस्तखत कर दिए। माँ की आँखों में दुख और सुख मिश्रित सागर उमड़ रहा था, जिसका आभास उनके इकलौते बेटे को जरा सा भी न था और जो खरीदार के जाते ही अपना बाँध तोड़कर तेज़ी से बह निकला।

अनमोल ने खुशी - खुशी पैसे से भरा सूटकेस लेकर घर में प्रवेश किया। तो देखा कि माँ रोए जा रही थी।

"माँ, आप चिंता क्यों करती हो... आप दोनों के रहने का इंतजाम मैंने कर दिया है. माँ कुछ समझ नहीं पा रही थी और चकित निगाहों से बेटे अनमोल को ही देखे जा रही थी।

पैसों का सूटकेस अलमारी में संभाल कर रखते हुए अन्नू बोला," माँ पास ही एक बहुत बढ़िया वृद्धाश्रम  है. मैं उसके मैनेजर से भी मिल आया हूँ.. आप लोगों के रहने सहने का बहुत बेहतरीन इंतजाम है वहाँ।आप दोनों दिन भर  इस घर में अकेले  पड़े पड़े ऊब जाते हैं..  मस्ती मजाक में आप का दिन वहाँ कैसे कट जाएगा आप उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते।माँ... वहाँ आपको आपकी उम्र के ढेर सारे लोग मिलेंगे। "  चेहरे पर झूठी मुस्कान सजाए माँ भीतर ही भीतर टूट रही थी।लेकिन उसके टूटने की आवाज उसके इकलौते बेटे को कानों तक नहीं पहुंच रही थी।

कुछ हफ्तों बाद अनमोल विदेश चला गया

बूढ़े माता पिता के आँखों के जिस इकलौते तारे अनमोल ने उन्हें वृद्धाश्रम की दहलीज़ दिखाई , उसने विदेश जाने के बाद उनकी सुधि लेने के लिए एक चिट्ठी भी कभी नहीं लिखी।

कुछ दिनों बाद इन सब बातों से अनजान आकांक्षा जब अपने माता - पिता से मिलने उनके घर पहुँची तो पड़ोसियों ने उस कलयुगी बेटे की सारी करतूत बता दी। आकांक्षा  डबडबाई आँखों से दौड़ी दौड़ी वृद्धाश्रम पहुँची और समझा बुझाकर अपने घर ले आई।



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