अनन्या अपनी स्कूल की दो दिवसीय पिकनिक पर गई थी। पूरा दिन उसने अपने दोस्तों के साथ बस में खूब हो हल्ला किया। हरी - हरी घास, चारों ओर हरियाली, पास ही बहती नदी और उसका ठंडा शीतल जल। प्रकृति के बीच आकर उसे खूब अच्छा लग रहा था। प्रकृति के सानिध्य में स्कूल कैम्प द्वारा आयोजित किए गए विभिन्न क्रियाकलापों में दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।शिक्षक भी सभी बच्चों को यथास्थान सुलाकर सोने चले गए।
कुछ घंटा भर ही बीता था कि अनन्या जोर से चीख़ी। चीख सुनते ही सब घबराकर नींद से जाग गए और अनन्या की ओर भागे। अनन्या अपने बिस्तर में नहीं थी। उसकी आवाज बाहर झाड़ियों से आ रही थी। रात का समय था। अंधेरा भी काफी था इसलिए किसी को कुछ नजर भी नहीं आ रहा था। तभी टॉर्च की रोशनी में किसी छात्र ने देखा कि एक बड़ी मोटी जंगली मकड़ी ने उसकी उंगली में काट लिया था और बड़ी तेज गति से दूसरी तरफ रेंगते हुए पल भर में हुए झाड़ियों में लुप्त हो गयी।
काटे हुए स्थान पर अनन्या को बहुत जलन महसूस हो रही थी। उसकी साँसे भी तेज हो रही थी। कराहते- कराहते उसने अपनी सहपाठी और प्रिय सहेली लीना को वह सोने की अंगूठी उठाने का इशारा किया जो उसकी उंगली से गिर गई थी।
अनन्या को देखते ही वह अजनबी समझ गया कि उसे किसी मकड़ी ने ही काटा है। उसने तुरंत उसे उठाया और सबको ढांँढस बंधाते हुए अपनी झोपड़ी की ओर भागा।तेज भागने के कारण उसकी आवाज़ में भी कंपन थी।
"आप लोग चिंता मत कीजिए..... बिटिया को कुछ नहीं होगा..... ये ठीक हो जाएगी...... इसका इलाज है मेरे पास.... मैं यहीं रहता हूँ.... पास ही मेरी झोपड़ी है..... अभी मैं जड़ी - बूटी लगाए देता हूँ... बस आधे घंटे में बिटिया ठीक हो जाएगी... बच्चों! तुम लोग भी अधिक परेशान मत हो.... सब ठीक हो जाएगा !"
सभी बच्चे और शिक्षक घबराए हुए उसके पीछे - पीछे तेज गति से भागे जा रहे थे । किसी स्थानीय व्यक्ति की सहायता लेने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं था। ऐसी परिस्थिति में उन्हें कुछ और सूझ भी नहीं रहा था। उस ग्रामीण ने बड़ी शीघ्रता दिखाते हुए ज़ड़ी - बूटियों को पीस कर सभी प्रभावित स्थानों और उसकी उंगली पर लगा दिया।
आधे घंटे बाद जब अनन्या को थोड़ी राहत महसूस हुई तो वहाँ उपस्थित सब लोगों ने चैन की साँस ली। सबके चेहरों पर मुस्कान खिल गई। उस ग्रामीण का और ईश्वर का धन्यवाद करके वे उसी दिन अपने घर वापस आ गए। उस दिन से अनन्या के मन में मकड़ी के लिए एक डर- सा बैठ गया।
कुछ बच्चों को बुरा लगा कि पिकनिक से उन्हें एक ही दिन में लौटना पड़ा। पर उससे ज्यादा खुशी उन्हें इस बात की थी कि अनन्या को कुछ नहीं हुआ और सही सलामत सभी लोग अपने घर लौट आए।
स्वरचित.: सुधा सिंह
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