शुक्रवार, 15 मई 2020

पूत- भतार


मीना को जब पता चला कि यशोदा जीजी  शहर से घर आ गई हैं तो घर के सारे काम जल्दी -जल्दी निपटा कर वह उनके घर पहुुँच गई। मीना यशोदा के पड़ोस में ही रहती थी। दोनों में बहुत आत्मीयता थी। अतः यशोदा और मीना की आपस में बड़ी जमती थी। यशोदा थी भी बड़ी दिलवाली । कभी किसी की मदद से पीछे न हटती। गाँव की सभी स्त्रियाँ उसकी सदाशयता से भली भांति परिचित थीं।
व्यापारी होने के नाते यशोदा का पति सोमेश अच्छा -खासा कमा लेता था इसलिए यशोदा की जेठानी चंपा हमेशा यशोदा से कुढ़ा करती थी।


यशोदा को देखते ही मीना के चेहरे पर मुसकान खिल गई। यशोदा के पैर छूकर उसने यशोदा के बच्चे को उसके हाथ से ले लिया और मोहित होकर उससे दुलराने लगी।


" जीजी.. लल्ला कितना सुंदर है !! ओह्ह.. मेरी नज़र न लगे । आठ -ओठ महीने का तो हो ही गया होगा न । बड़ा अच्छा कीं जीजी ..  जो आप आ गईं। बड़ा दिन हो गया था आपको देखे।" कहते -कहते उसने अपनी आँख की एक कोर से काजल निकालकर यशोदा के बेटे के कान के पीछे लगा दिया।


"आना तो था ही मीना, बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं और लल्ला का मुंडन भी तो करवाना है न।"-यशोदा ने कहा।

मीना ने यशोदा की बात को बीच में  काटा और यशोदा की जेठानी चंपा की ओर कुटिल मुस्कान फेंकती हुए यशोदा से बोली ," अरे जीजी ,अब तो अब तो आपके पास गहना- गुरिया भी है..और पूत- भतार(भर्तार,पति) भी। अब तो इस घर में आप- सा अमीर और कोई नहीं।"  चंपा पास ही खाट पर बैठी थी । अपनी कही पुरानी बात याद आते ही वह झेंप गई।


यशोदा और चंपा के सामने पिछले साल का वह दृश्य तैर गया । गर्मी की छुट्टियों में पिछली बार जब यशोदा गाँव आई थी तो उसके हाथ में सोने के मोटे -मोटे  नक्काशीदार कंगन थे, जिन्हें देखकर हर कोई उनकी तारीफ कर रहा था। 

उस समय भी चंपा वहीं पास में बैठी थी। चंपा से जब उनकी बातें बर्दाश्त न हुई तो उसने बड़े अहं भाव से सबसे चिढ़कर कहा ,"हंह.. लोगों के पास गहना -गुरिया है  तो क्या हुआ... मेरे पास पूत भतार है।"  , कहकर मन ही मन कुछ बुदबुदाते हुए चंपा वहाँ से उठकर अपने कमरे में चल दी।


अपनी जेठानी द्वारा कही गई इतनी कड़वी बातें सुनकर यशोदा का चेहरा फिर उतर गया  और आँसू आँखों से लुढ़ककर गालों पर आ गए।
उसे केवल तीन लड़कियाँ ही थी। बेटा एक भी नहीं था। चंपा बार- बार यशोदा की इस कमी का अहसास कराती रहती।

परंतु वह कुछ बोल न पाती।बोल भी क्या सकती थी।बेटा या बेटी होना अपने हाथ में तो होता नहीं।
 परंतु विधाता ने पुत्र रत्न देकर इस बार उसकी इस कमी को भी पूरा कर दिया था और चंपा के मुंह पर  भी एक जोरदार तमाचा जड़ा था। वो कहते हैं न कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज़ नहीं होती। पर न्याय होकर रहता है।



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