"अरे यह क्या कर रही हो जरा देखूँ तो" पास ही बैठे नीतीश ने अपने मन में उभरी किसी शंकावश प्रतिमा के हाथ से सायास उसका फोन छीन लिया और प्रतिमा ने जो कुछ अपने भाई को पोस्ट किया था उसे पढ़ते ही फ़ोन से तत्क्षण उसे डिलीट कर दिया।
"प्रतिमा बस भी करो ,क्या अब अपने बड़े भाई का भी घर बर्बाद करके ही दम लोगी???"
"क्या कह रहे हो नीतीश ! तुमने देखा उस सलोनी ने लिखा क्या है!"
"शर्म करो प्रतिमा वे तुमसे बड़ी हैं। तुम्हारे बड़े भाई की पत्नी हैं। क्या तुम्हारे मम्मी और पापा ने तुम्हें अपने बड़ों का सम्मान करना भी नहीं सिखाया। अपने छोटे भाई की जिंदगी में आग लगाकर उनका विवाह- विच्छेद करवाकर भी तुम्हें अब तक शांति नहीं मिली कि अब बड़े भाई की जिंदगी में भी विष घोल देना चाहती हो... तुम्हारी वजह से ही तुम्हारे माँ बाप ने उन्हें घर से अलग कर दिया और अब वो लोग शांति से रह रहे हैं तो कम से कम अब तो उनका पीछा छोड़ दो।"
"तो क्या उन्होंने जो कुछ मेरे दोस्तों से मेरे और मम्मी- पापा के बारे में कहा ,हमारी बदनामी की..वो सब ठीक है।"
"अरे वाह, तुम और तुम्हारे मम्मी पापा उनके बारे में उल्टा सीधा बोल -बोलकर
दुनिया भर में जो ढोल पीटते रहते हैं वो सही है न....प्रतिमा, तुम लोग कितने दोगले हो न ,अपने लिए अलग विधान और उनके लिए अलग। मात्र इसलिए कि वो बहू हैं ,उन्हें अपने मन से साँस लेने की इजाजत भी नहीं है न!!! "
"सलोनी से तुम्हारी कोई बात हुई क्या नीतीश ...तुम आज उसकी बोली क्यों बोल रहे हो.. लगता है उसने तुम्हें भी कोई पट्टी पढ़ा दी है।" प्रतिमा ने नीतीश पर आरोप मढ़ते हुए कहा।
"अब इससे अधिक कि मैं तुमसे उम्मीद भी नहीं कर सकता प्रतिमा... मैं जानता हूँ कि तुम्हारी सोच कितनी निकृष्ट है।याद रखो तुम्हारी वजह से एक दिन तुम्हारे मम्मी -पापा एकदम अकेले पड़ जाएँगे। उनके बुढ़ापे का सहारा तुमने स्वयं ही उनसे छीन लिया है। वैसे भी गलती अकेली तुम्हारी नहीं है ।सबको उनके कर्मों का फल देर सवेर मिलता ही है सो उन्हें भी मिलेगा। अरे, तुम्हें बुद्धि नहीं थी.. कम से कम उन्होंने तो तुम्हें समझाया होता।इतना वयोवृद्ध होकर उन्हें अभी तक समझ नहीं आयी है यह बात। तुम लोगों की हरकतों के कारण ही तो अब भैया भाभी रक्षाबंधन पर भी तुमसे मिलने नहीं आते.. सोचो तुमने क्या खोया और क्या पाया है।"
" तो क्या सारा दोष हमारा ही है नीतीश, उनकी कोई गलती नहीं.. और मैं तुम्हारी पत्नी हूँ मेरा साथ देने की जगह तुम उनके गुण गा रहे हो। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है....और वैसे भी मैं कुछ बोल नहीं रही हूँ इसका मतलब ये नहीं है कि मुझे बोलना नहीं आता नीतीश ।"
"हुँह...बोलना..यही तो तुम्हें आता है... कैसे किसको मूर्ख बनाना है ये तुम लोगों से बेहतर कौन जानता है... आज तुम्हारी वजह से ही मेरे दोनों भाई भी मुझसे भी दूर हो गए हैं। ससुराल को नहीं तो कम से कम पीहर को तो छोड़ दिया होता। माँ तुम्हारी सुंदरता पर लोभित न होतीं तो आज मुझे ये दिन नहीं देखना पड़ता। तुम बाहर से जितनी सुंदर हो प्रतिमा भीतर से उतनी ही कुरूप। डायन भी सात घर छोड़ देती है, तुम अपने मायके को ही छोड़ दो।भीख माँगता हूँ तुमसे प्रतिमा ,कम से कम अब तो सुधर जाओ। एक परिवार को तो सुखी रहने दो।"
"वरना ..."
"वरना मुझे मजबूरन यह कहना पड़ेगा कि अब मेरा घर भी टूट जाएगा। अब तो माँ भी नहीं रहीं जो मुझे रोक सकें। तुम्हारे मम्मी- पापा का लिहाज भी अब और नहीं करूँगा। अरे, जो अपने बेटों के नहीं हुए, वे मेरे क्या होंगे। मेरे संसार में उन्होंने बहुत दखलंदाजी कर ली । बस ,अब और नहीं। अब फैसला तुम्हारे हाथ में है। मायके में दखलंदाजी या पति के साथ सुखी संसार।इसका निर्णय अब तुम पर छोड़ता हूँ।"
ठक!!!..
नीतीश सख़्त चेतावनी देकर क्रोध में घर से बाहर निकल गया और प्रतिमा गहन विचारों में खो गई।
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