जग्गी बैसाखी के सहारे बड़ी खुशी - खुशी लंबे डग भरता हुआ सुखिया के पास पहुँचा।
"देख सुखिया, ये देख आज मेरे पास कितने पैसे है... पाँच सौ, छह सौ, सात सौ, आठ सौ और ये.. नब्बे दो बानवे..अऽऽरे... केवल आठ रुपये से रह गया..."
जग्गी भीख में मिले हुए नोटों को खुश होकर बड़ी तल्लीनता से गिन रहा था परंतु आठ रुपए कम होने का मलाल भी हो रहा था उसे।
"कोई बात नहीं, कल थोड़ा जल्दी जाऊँगा सिग्नल पर... ज्यादा कमाने के लिए बिजनेस पर कल से ज्यादा ध्यान लगाऊँगा.. तू सुन रहा है न सुखिया??.. "
अपनी आज की कमाई से अपना ध्यान हटाते हुए उसने सुखिया की ओर देखा,
"अरे सुखिया, तू इतना उदास हो कर क्यों बैठा है.. क्या हुआ???.. तुझे खुशी नहीं हुई क्या मेरे पैसे देखकर??? " जग्गी ने सुखिया से पूछा।
सुखिया माथे पर हाथ रखकर यूँ बैठा था जैसे कोई मातम मना रहा हो!
जग्गी के पूछने पर तुनक कर बोला, " तू चुप कर,,,,, आ गया है फिर से मेरे ज़ख्मों पर नमक छिड़कने,,,,,, तू आज भी ज्यादा पैसे कमाकर आया है,,,, और मैं,, पूरे दिन में ये,,,, ये उनसठ रुपये,," रुपयों को हाथ मसलते हुए उसने गुस्से में फिर से उन्हें अपनी बड़ी सी खाली कटोरी में फेंक दिया।
अरे,अरे, अरे,,, इतना गुस्सा क्यों करता है, चल आज तुझे मैं पार्टी देता हूँ,, ये देखऽऽऽ मेरी चमेलीऽऽऽ।" कहते हुए उसने अपनी जेब से देशी शराब की एक बड़ी- सी बोतल निकाल कर उसे चूम लिया ।
" और ये लेऽऽऽ साथ में चखना भी है ,,, देशी शराब और चखना देखते ही सुखिया की आँखों में चमक आ गई।
कुछ ही देर में दोनों दोस्त नशे में धुत्त हो चुके थे।दोनों की जुबानें अब लड़खड़ाने लगी थीं।
सुखिया बोला," जग्गी तू बड़ा नसीबवान है रे .... इतने पैसे कमाता है.. ऊपरवाला मेरे से नाराज है शायद.. एक तो भिखारी बनाया.. ऊपर से भीख भी नहीं दिलाता है...। " सुखिया ऊपर आसमान की ओर ताकते हुए भगवान का नाम लेकर उन्हें कोसने लगा।
"शऽऽऽऽऽ... सुखियाऽऽऽ,,, तुझे कमाने नहीं आता,,,, तू ऊपर वाले को क्या कोसता है.... आऽऽऽ मैं तुझे बताता हूँ कैसे कमाते हैं पैसे.." नशे में झूलते हुए जग्गी ने अपना हाथ सुखिया के गले में डाल दिया और बोला," राज़ की बात है तू बोल किसी को बताएगा तो नहीं!!!!"
"नहींऽऽऽ बताऊँगा। " सुखिया बोला।
"तो खा अपनी माँ की कसमऽऽऽ,,, तू उस कु##ऽऽऽऽ, कमी#ऽऽऽ अब्दुल को भी नहीं बोलेगा??"
" नहीं, अब्दुल को भी नहीं बोलूँगा .... माँ कसम! "
" सुखिया तू मेरा बहुत अच्छा दोस्त इसलिए तुझे बता रहा हूँ.... देख तू किसी को बोलना नहीं हाँऽऽऽ...। "
जग्गी सुखिया को बार- बार कसम दिलाता और सुखिया भी हर बार कसम खाकर उसे किसी को न बताने का वायदा करता। सुखिया को क्रोध भी आ रहा था परंतु वह ज्यादा कमाई का नुस्खा मिलने की उम्मीद में कुछ बोल नहीं पा रहा था। यह सिलसिला काफी देर तक चलता रहा।
सुखियाऽऽऽ मेरे दोस्त तू मेरा सच्चा दोस्त है इसलिए तुझे बता रहा हूँ, सुन.. तू न कल से अपनी कटोरी में सौ रुपये के नोट, पचास रुपये के नोट, बीस रुपये के नोट पहले से ही रखना.... फिर भीख माँगना... देखनाऽऽऽ तेरा बिजनेस चल निकलेगऽघऽऽ... तुझे ज्यादा पैसे मिलेंगे...।"
" ए जग्गी कुछ भी फेंक मत, मेरी कटोरी में इतने बड़े - बड़े नोट देखकर कोई मुझे भीख ही नहीं देगा.. सोचेगा इसके पास तो पहले से ही पेट भरने के पैसे हैं।"
सुखियाऽऽऽऽ नहीं, तू मेरी बात मानऽऽ... कल से नोट ही रखना अपनी कटोरी मेंऽऽ... तुझे पता है बड़े - बड़े सेठ लोग क्या बोलते हैं!!!!
" क्या बोलते हैं??? " सुखिया ने जिज्ञासावश पूछा।
" अरेऽऽ उन लोगों से ही तो मैं सुना कि पैसा पैसे को खींचता है...उसमें ऐसा चुंबक लगा होता है जो किसी को भी दिखता नहीं और सब उसकी ओर खिंचे चले आते हैं ..... तभी से मैंने भी सोच लिया कि मैं ऐसा ही करूँगा और देखऽऽ तभी से मेरे को भी ज्यादा भीख मिलती है... मेरा बिजनेस बढ़ गया है... है कि नहीं । "
सुखिया को अब जग्गी की बात पर यकीन होने लगा था.. उसे भी अब अपनी आँखों के सामने ढेर सारे रुपयों से भरी कटोरी नजर आने लगी थी...
" हाँ रेऽऽ जग्गी लगता है तू सही बोल रहा है कल से मैं भी ऐसा ही करूँगा... "सुखिया खुश हो आशान्वित भाव से बोला।
"पर तूने मुझे वादा किया है तू किसी को बोलेगा नहीं...."
हाँ बाबा, नहीं बोलूँगा किसी को.... अब चल, ठेले पर चलकर मस्त भुर्जी - पाव खाते हैं...." और दोनों लड़खड़ाते कदमों से ठेले की ओर बढ़ जाते हैं।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 05 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपैसा पैसे को खींचता है , इस पर बचपन में दूसरी कहानी पढ़ी थी ।
जवाब देंहटाएंबड़ी सच्ची सी कहानी लिखी है ।
वाह
जवाब देंहटाएंक्या बात है।
बड़े नॉट देख कर बहुत से लोग उससे छोटे नॉट नहीं भीख में नहीं देते।
ईगो हर्ट होता हो जैसे।
गुजरे वक़्त में से...
बहुत सुन्दर सृजन।
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